(पं. तुलसीराम शर्मा वृन्दावन)
वशीकरण का सर्वश्रेष्ठ उपाय अपने को सद्गुणी बनाना है। सद्गुणों से मनुष्य और देवता ही नहीं परमात्मा भी प्रसन्न होते हैं और उसके वश में हो जाते हैं। श्री लक्ष्मण जी ने हनुमान से राम की ओर संकेत करके कहा-
अहमस्याऽवरो भ्राता गुणैर्दास्यमुवागतः।
वाल्मीकि रा. कि. सं. 4।12
मैं इन (राम) का छोटा भाई हूँ। इनके गुण के कारण इनका दास हो गया हूँ।
महर्षि वेद व्यास जी ने युधिष्ठिर से कहा-
तथापिनिघ्नं नपतावकीनैः प्रह्वीकृतंमे हृदयं गुणौघैः
-किरात 3।12
हे युधिष्ठिर! हम सरीखे पुरुषों को सर्वत्र समदृष्टि रखनी चाहिए तो भी तुम्हारे गुणों से पिघला हुआ मेरा मन तुम्हारे कब्जे में हो गया है।
श्री विष्णु भगवान ने राजा पृथु से कहा है-
वरं च मत्कंचन मानवेन्द्र वृणीष्वतेऽहं गुणशील
यंत्रितः॥ भा. 4।20।16
हे राजन्! मुझसे कुछ वरदान माँग, तेरे गुण और शील से मैं तेरे वश में हो गया हूँ।
एक समय सुरपति इन्द्र ने राजा हरिश्चन्द्र से कहा-
तितिक्षा दम सत्याद्यैः स्वगुणैः परितोषितः।
मार्कण्डेय पु. अ. 8। 46
हे राजन्! तितिक्षा (सहन शीलता) दम- (इन्द्रिय निग्रह) सत्य आदि अपने गुणों से आपने मुझे प्रसन्न कर लिया है।
येषाँ गुण गणैः कृष्णदौत्यादौ भगवान् कृतः।
-भाग 1। 7। 17
पाण्डवों के सद्गुणों ने भगवान कृष्ण से दूत और सारथी के काम करा लिए।
यस्म प्रसन्नो भगवान् गुणैर्मैत्र्यादिभिर्हरिः। तस्मै नमन्ति भूतानि निम्नमापइवस्वतम्।
भाग 1। 7। 47
सद्गुणों से भगवान प्रसन्न होते हैं और सद्-गुणी के लिए संसार नमता है। जैसे जल नीचे को बहता है।
इसलिए जो कोई दूसरों को वश में करने की विद्या सीखना चाहते हों उन्हें चाहिए कि अपने अंदर त्याग, प्रेम, सदाचार, सत्य व्यवहार, उदारता, सेवा, मधुर भाषण, निरालस्यता आदि गुणों को पैदा करें। सद्गुणों से ही दूसरे के हृदय को अपने वश में किया जा सकता है। स्वार्थ साधन के लिए किसी के साथ कपट धूर्तता और चालबाजी के मंत्र-तंत्र किये जायं तो वे अस्थायी होते हैं और उनसे लाभ के स्थान पर हानि अधिक होती है।