एकान्त में तुम क्या सोचते हो?

April 1945

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(डॉक्टर रामचन्द्र ‘महेन्द्र’ एम. ए. डी. लिट्)

तुम्हारी आकाँक्षाएँ क्या-क्या हैं? उन्हें प्राप्त करने के तुम्हारे कौन-कौन से अवसर हैं? आप जीवन के संग्राम में प्रवेश करने से प्रथम मन, वचन तथा काया से यह दृढ़ भावना बना लीजिए कि हमारा भविष्य अत्यन्त प्रकाशमान होगा, हम अपनी आकाँक्षाओं को पूर्णतः प्राप्त कर सकेंगे, हम पूर्ण उन्नतिशील तथा सुखी होंगे, हमें सफलता और विजय प्राप्त होगी। सब प्रकार की स्फूर्तिदायक सामग्री हमें उपलब्ध होगी। सर्व प्रथम इस दृढ़ भावना को अव्यक्त में मजबूती से बिठाइए। एकान्त स्थान में तुम्हें निश्चयों को अविचल रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

आप ऐसा सोचिए जैसे आपके मनोरथ क्रमशः आपकी ओर आकर्षित होकर चले आ रहे हैं। आपकी मुश्किल सरल होती चली आ रही है।

आप क्रमशः सिद्धि प्राप्त करते जा रहे हैं। अपनी आशाओं को निर्बल न होने दीजिए, प्रत्युत उन्हें और भी तीव्रतर बनाने का उद्योग कीजिए। कोई बात नहीं यदि कुछ प्रतिकूलताएँ दिखाई देती हैं। मार्ग शीघ्र ही स्वच्छ हो जायगा। इन आशापूर्ण, शुभ-सूचक पवित्र चित्रों से मन मन्दिर को सजाना भी एक उत्कृष्टता है। इसमें पारंगत बनकर सफलता के मीठे फल चखिए। आप चाहे कोई कार्य हाथ में लें, चाहे जो आरम्भ करें, चाहे जिस मार्ग का अवलम्बन ग्रहण करें शुभ चित्रों को देखने की आदत बना लीजिए।

एकान्त देखकर अधोगामी मनोविकार भी उत्तेजित हो उठते हैं। कायरता तथा भय मनोबल क्षीण करने ने लगते हैं। हमारे मन के अव्यक्त स्थल में चिर संचित भय का संस्कार इतना प्रबल और गहरा जमा हुआ है कि यही दुष्ट जीवन के अनेक सुखमय स्वप्नों को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है। इसे पास मत फटकने दो।


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