शठे शाठ्यं समाचरेत्

April 1945

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(लेखक- श्री स्वामी चिदानन्द जी सरस्वती)

1- मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र जी ने छल से बाली का वध किया था। सतक्ष होकर युद्ध में बाली को मारने वाला उस समय कोई न था, जो आमने-सामने उससे युद्ध करता-उसकी आधी शक्ति, वह अपने आकर्षण से छीन लेता था- इसलिए श्री रामचन्द्र जी ने वृक्षों के पीछे छुपकर-उसके सामने न आकर-युद्ध करने का नाम सत्य नहीं था। परन्तु राष्ट्र हितार्थ राम उसे मारना चाहते थे, अतः साधारण नियम को भंग करके स्वयं वृक्ष की आड़ में खड़े हो राम ने सुग्रीव के राज तथा स्त्री अपहर्त्ता ज्येष्ठ भ्राता बाली का बाण द्वारा वध किया।

2- बिहार का राजा जरासिंध जो कि अत्यधिक अत्याचारी था, जिसने छोटे-छोटे 80 राजाओं के राज को छीन रक्खा था और बहुत से राजाओं की स्त्रियों को हरकर अपने महलों में रखा हुआ था। उस समय जरासिंध का मुकाबला करने की किसी में सामर्थ्य न थी- इसलिए उसको श्री कृष्ण जी ने एक चाल से मरवाया था। वे अर्जुन और भीम के साथ स्वयं ब्राह्मणों का वेश बनाकर जरासिंध के अन्तपुर में पहुँचे और वहाँ आपने अपने आपको ब्राह्मण कहा और उसके महलों में ही भीम से जरासिंध का मल्लयुद्ध में वध करवाया।

3- कौरव-पाँडव कुलगुरु महारथी द्रोणाचार्य महाभारत के संग्राम में जब पाँडवों की सेना का संहार कर रहे थे और पाँडवों के बहुत से वीर द्रोणाचार्य के सेनापतित्व में मारे जा चुके तो उनकी रक्षा कराने के लिए श्री कृष्ण जी ने एक रचना रची, वह यह है कि अश्वत्थामा नाम का एक हाथी था, श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा मारा गया का कोलाहल मचवा दिया। द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था। अपने पुत्र की मृत्यु सुन कर द्रोणाचार्य का मन व्यथित हो गया, और घबरा गये। इस अवस्था में द्रोण के बाण अब सीधे न आते थे, इधर घृष्ट धुम्म को समझाया कि अब अवसर है द्रोणाचार्य को मार! तब उसने बाणों से द्रोणाचार्य को मुशायी किया। छल से द्रोणाचार्य को यदि श्री कृष्ण जी उस समय न मरवाते तो पाँडवों की विजय असम्भव थी।

4- कर्ण एक महाबली योद्धा था। आमने-सामने के युद्ध में अर्जुन द्वारा उसे पराजित कराना असम्भव था -इसलिए श्री कृष्ण जी ने अर्जुन द्वारा उसे छल से मरवाया। वह भी ऐसे समय में जब कर्ण के घोड़े घायल हो गये थे और उसका रथ कीचड़ में फँसा हुआ था और वह रथ से उतरा हुआ था, उसी समय अर्जुन को समझाकर कर्ण का वध करवाया। कर्ण ने छल से अर्जुन पुत्र अभिमन्यु को मारा था-श्रीकृष्ण ने भी उसका वैसा प्रतिकार (बदला) लिया।

5- छत्रपति शिवाजी एक बार जब धोखे से औरंगजेब के कैदी होकर आगरे में नजरबन्द थे तो उन्होंने यह कहकर कि मैं मस्जिदों और मन्दिरों में बाँटना चाहता हूँ- औरंगजेब की आज्ञा कि मिठाई का प्रबन्ध होने पर मिठाई की एक टोकरी में छिपकर बैठ आगरे में औरंगजेब के चंगुल से भागे। और फिर औरंगजेब को अच्छी तरह युद्ध में चने चबाये।

ये हैं वे कुछ थोड़े से दृष्टांत जब कि प्राचीन आर्य वीरों ने छलियों देश व धर्म द्रोहियों को अपनी चतुरता से मारा तथा देश की व अपनी रक्षा भी की। यदि वे ऐसा न करते तो आज इतिहास में उनका नाम और ही तरह से लिखा जाता। ‘शठे शाठ्यं समाचरेत्’ की नीति ने ही आज उनके गौरव को उच्चासन पर बैठाया हुआ है।


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