मानसिक दुर्बलताएँ ही, शारीरिक दुर्बलताओं का कारण हैं।

April 1945

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(लेखिका-कुमारी कैलाश वर्मा)

मन उस पीलवान की तरह है जो शरीर रूपी हाथी को जिधर चाहे हाँकता है। देखने में शरीर कितना बड़ा है किन्तु हाथी की तरह यह मन के हाथ का खिलौना मात्र है। जिधर मन का इष्ट होगा उसी ओर शरीर की प्रगति होगी। प्रत्येक पल, प्रत्येक अवस्था में, प्रत्येक स्थिति में मन का ही प्रभुत्व है।

कितने ही व्यक्ति शरीर को पुष्ट करते समय मानसिक परिपुष्टि की बात को बिल्कुल विस्मृत कर बैठते हैं। मन में यदि ईर्ष्या, लोभ, क्रोध, द्वन्द्व का राज्य है तो शरीर क्योंकर पूर्ण स्वस्थ हो सकता है। हमें प्रत्येक अवस्था में अपने मानसिक स्तर को उच्च बनाने का प्रयत्न करना अपेक्षित है।

यदि हम निज अन्तरात्मा की शुद्धि का प्रयत्न करें, अपने मनः प्रदेश में विजातीय तत्वों का प्रवेश न होने दें तथा सदैव शक्ति, शान्ति, उन्नति के शुभ विचारों को हृदय मंदिर में प्रचुरता से आने दें तो सहज में ही पूर्ण निरोग जीवन का आनन्द लूट सकते हैं।

एक लेखक महोदय लिखते हैं- मैं चार वर्ष से व्यायाम कर रहा था। शारीरिक दुर्बलता तो थी ही, किन्तु मानसिक विचार भी स्थिर न था। यही कारण है कि मैं स्वयं अपने आप को व्यायाम करता हुआ भी दुर्बलता का अनुभव रहा था। जब मैंने मानसिक परिष्कार पर ध्यान दिया तब से निरोगी बन चुका हूँ और निज जीवन में एक विचित्र प्रकार का आनन्द प्राप्त कर रहा हूँ।

उफ्! आज हमारे पतन का मुख्य कारण हमारी दिन पर दिन बढ़ती होती हुई मानसिक दुर्बलता है। यही हमारा कमजोर स्थल (Weakspot) है। आज के नवीन युग में हमें दुर्बल मन्तव्यों, दुर्बल भावनाओं, राग-द्वेषादि, अज्ञान अंधकार को समूल हटा कर निःसीम परमात्मा की ज्योति को प्रकट करना होगा। क्रोध, घृणा, अपमान को विस्तृत कर आत्मा के आनन्दमय प्रदेश में लीन होना होगा। वास्तविक शान्ति का प्रचुर भंडार तो हमारे अंतःप्रदेश में स्थित है। अपनी इन्द्रियों को समेट मन को उन्नति के, परिपुष्टि के, प्रेम के, विचारों से भरना होगा तब ही हमारी नाड़ियों में स्वस्थ रक्त प्रवाहित हो सकेगा।

हम ऊपरी हृदय से व्यायाम, ध्यान, तप, यज्ञ करते हैं, ब्रह्मचर्य एवं संयमी जीवन बिताने का अभिनय (Acting) कर रहे हैं किन्तु हमारे मन के कोने-कोने में कलुषित वासनाएँ व्याप्त हैं। इस अभिनय में हम दूसरों को धोखा नहीं प्रत्युत स्वयं अपने आप को ही धोखा दे रहे हैं। हृदय में निर्बलता भरी हुई है तो ऊपरी साधनों से क्या होना जाना है।

यदि आप स्वस्थ होना चाहते हैं तो कार्य मानसिक स्वास्थ्य से प्रारम्भ कीजिए। वही आपकी मूल भित्ति है। जो रचनात्मक कार्य वहाँ से प्रारम्भ किया जायगा उसकी उत्तरोत्तर अभिवृद्धि निश्चित है।

यदि आप स्वस्थ होना चाहते हैं तो कार्य मानसिक स्वास्थ्य से प्रारम्भ कीजिए। वही आपकी मूल भित्ति है। जो रचनात्मक कार्य वहाँ से प्रारम्भ किया जायगा उसकी उत्तरोत्तर अभिवृद्धि निश्चित है।


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