मेरी मथुरा यात्रा

November 1943

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(श्री विद्यादत्त गोपालदत्त शुक्ल, सोहागपुर)

पिछले तीन वर्षों से मैं अखण्ड ज्योति का ग्राहक हूँ। यों तो मेरे यहाँ कई भाषाओं के करीब 20 धार्मिक पत्रिकाएं आती हैं परन्तु उन सब में अखंड ज्योति मुझे विशेष रुचिकर होती है। इसकी लेखन शैली ऐसी है जो गले से नीचे दूध की तरह उतरती जाती है। इस वर्ष हाथ के बने स्वदेशी कागज में तो ऐसी सात्विकता रही कि उसे स्पर्श करते ही ताड़पत्र और भोजपत्र पर लिखे प्राचीन ऋषि प्रणीत ग्रन्थों की तरह सहज श्रद्धा उत्पन्न होती थी। ऐसी ही अनेक आकर्षणों के कारण अखंड ज्योति संपादक से मिलने की मेरे मन में तीव्र उत्कंठा जागृत हो आई और पिछले मास अपने इस वृद्ध शरीर को मथुरा घसीट ले गया।

मैं सत्संग प्रेमी हूँ। विगत तीस वर्षों से उच्च कोटि की आत्माओं के संपर्क में बड़ी गम्भीरतापूर्वक मैं आता रहा हूँ। इसलिए स्वभावतः मुझे ऐसे व्यक्तियों का नीर-क्षीर परीक्षण करने का बहुत कुछ अनुभव हो चला है। अपनी उसी छोटी सी योग्यता के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि आचार्य श्रीराम शर्मा एक विलक्षण पुरुष हैं। इस दुर्बल काय अस्थि पंजर तपस्वी के चारों ओर एक ऐसा प्रभावशाली तेज मण्डल छाया रहा है जिसके निकट जाते ही अनेक प्रकार के संदेह, उद्वेग, शंका, वासना, विकार अपने आप शान्त हो जाते हैं और उसी क्षण संतोष, शान्ति, पवित्रता, एवं आस्तिकता का संचार होता है।

इस महापंडित की विद्या अगाध है। वेदों का, शास्त्रों का, दर्शनों का, पुराणों का, इनका अध्ययन गम्भीर है। ईसाई, इस्लाम, पारसी, बौद्ध तथा भारत में प्रचलित अनेक मत-मतान्तरों के धर्म ग्रन्थों का इन्होंने पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया है। मनुष्य जीवन की असंख्य समस्याओं पर विविध दार्शनिक दृष्टिकोणों से इनके बड़े सुलझे हुए स्पष्ट विचार हैं। पाश्चात्य भौतिकवाद और पूर्वी आध्यात्मवाद को एक स्थान पर केन्द्रीभूत करके एक ऐसी त्रिवेणी आपकी विचारधारा में प्रवाहित होती है जो नई रोशनी के लोगों को जितनी पसंद आती है उतनी ही प्राचीन परिपाटी वाले को भी हृदयग्राही होती है।

उच्च चरित्र, आदर्श सदाचार, निष्कपट आचरण, बालकों का सा भोलापन, दूध सा स्वच्छ हृदय, ईश्वर ने इनको दिया है। एक सच्चे ब्राह्मण को जैसा तपस्वी, त्यागी, उदार, अपरिग्रही, निर्लोभ, परोपकारी, सत्यनिष्ठ होना चाहिए, उस आदर्श की मूर्तिमान प्रतिमा इस कलियुग में जब हम देखते हैं तो विश्वास होता है कि भारत का ऋषित्व अभी जीवित है और उसके द्वारा यह देश एक दिन फिर अपने आत्मिक बल से संसार का पथ-प्रदर्शन करेगा।

एक छोटे से मकान में अखंड ज्योति का छोटा सा दफ्तर है। बाहरी ठाठ-बाट वहाँ कुछ नहीं, यह सादगी इस तड़क भड़क की दुनिया को छोटी वस्तु जंचेगी। ठाठ-बाट से महत्ता को नापने वाले लोगों की निगाह में यह एक छोटा सा दुर्बल प्रयत्न मालूम होगा, पर जिनमें आत्मिक परख है, जिनमें थोड़ी भी सूक्ष्म दृष्टि है, जिनमें सत्य को पहचानने की जरा सी भी क्षमता है, वे देखेंगे कि यह ईश्वरीय सत्य अत्यंत प्रबल शक्ति छिपाये बैठा है, यह तपस्या का महान संस्थान आगे चलकर पाप-ताप से पीड़ित करोड़ों व्यक्तियों को सत्य का संदेश सुनावेगा और उन्हें आत्मिक शान्ति प्रदान करेगा।

दस दिन मथुरा रहकर मैं वापिस लौटा। इन दिनों में कितना आत्म-बल लेकर मैं लौटा हूँ इसे किस प्रकार प्रकट करूं? मेरा अनुमान है कि अब तक के लम्बे जीवन में यह दस दिन इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन पर पिछली सारी जिंदगी को न्यौछावर किया जा सकता है।


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