बड़ी उम्र में पिता बनना चाहिए।

November 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अधिक आयु में संतानोत्पादन करना कई दृष्टियों से लाभदायक है। प्रो रेल्ड फोल्ड ने इस संबंध में गहरी खोजबीन की है और उन्होंने अनेक सबूतों के आधार पर सिद्ध किया है कि नई उम्र के लड़कों से जो संतान उत्पन्न होती है वह उजड्ड, मूर्ख एवं दुर्गुणी होती है। कारण यह है कि नई उम्र के युवकों का शारीरिक और मानसिक विकास बहुत कम होता है, इसलिए उन अविकसित युवकों की संतान भी महत्वपूर्ण सद्गुणों से वंचित रह जाती है।

अनेक किस्से-कहानियों में ऐसी गाथाएं मिलती हैं जिनमें किसी पिता के बड़े बेटे को अल्प बुद्धि और छोटे बेटे को बुद्धिमान बताया जाता है। सचमुच यह तथ्य ठीक है। अधिक आयु वाले पुरुष से जो बच्चा उत्पन्न होता है वह अपेक्षाकृत अधिक पराक्रमी और प्रतिभाशाली होता है। बीस-बाईस वर्ष से कम उम्र के पिताओं की संतान स्वास्थ्य की दृष्टि से भी निर्बल होती है और मानसिक दृष्टि से भी। बाईस से तीस वर्ष तक की उम्र के पिताओं के बच्चे खूब तन्दुरुस्त होते हैं और साधारणतः होशियार भी होते है। तीस से ऊँची उम्र के पिता द्वारा प्रखर बुद्धि के बालक पैदा होते हैं। चालीस से ऊपर की आयु में उत्पन्न हुआ बालक स्वास्थ्य की दृष्टि से कुछ हलका भले ही रहे पर बुद्धि में असाधारण होता है।

प्रो रेल्ड फोल्ड ने अपनी पुस्तक में असंख्य प्रमाण एकत्रित करके प्रकाशित किये हैं जो आयु संबंधी उपरोक्त तथ्यों की पुष्टि करते हैं। गेटे, स्पिलर, शेक्सपियर, रैफल, एवार्ड मैकाले, गोल्डस्मिथ, फेड्रिक दी ग्रेट, ग्रान्ट, सिकन्दर, नेपोलियन, रुजवेल्ट आदि महापुरुष अधेड़ माता-पिताओं के रज वीर्य से पैदा हुए थे। चालीस से पचास वर्ष के बीच की आयु में उत्पन्न हुए बालक देश के नेता, धुरंधर विद्वान गंभीर एवं बुद्धिमान होते हैं, प्रिंस बिस्मार्क, क्रामवेल, ग्लेडस्टोन, कीटो जैसे प्रतिभाशाली पंडित ढलती उम्र के पिताओं से पैदा हुए थे। जेलखानों में बंद अपराधियों की ढूँढ़ खोज करने से जाना गया है कि उनमें से तीन चौथाई ऐसे हैं जो किशोर अवस्था के पिताओं के वीर्य से उत्पन्न हैं, कारण यह है कि चढ़ती उम्र में शरारत और नासमझी अधिक होती है इसलिए यह गुण संतान में भी उतर आते हैं।

कुछ विशेष उदाहरण ऐसे भी मिलते हैं जिनसे उपरोक्त सिद्धान्त की पुष्टि नहीं होती। ऐसे उदाहरणों के बारे में जाँच करने पर पता चलता है कि उनके माता-पिता असाधारण रूप से बाल्यकाल में ही वृद्धों जैसी बुद्धिमत्ता संग्रह कर चुके थे, या फिर वह जन्मा हुआ बालक पूर्व जन्मों के कोई विशेष संस्कार अपने में लिये हुए हो। यह भी हो सकता है कि नई उम्र की संतान बुद्धिमान निकल आवे और ढलती उम्र की मूर्ख या दुर्गुणी निकले। परन्तु ये अपवाद हैं जो थोड़े से ही होते हैं।

आधुनिक शोधें जितनी खोज और गहराई के साथ की जाती हैं, उतना ही प्राचीन स्वर्ण सिद्धान्तों के समीप पहुँचती जाती हैं, शास्त्रकारों ने दीर्घकाल तक ब्रह्मचर्य रखने और बड़ी उम्र में सन्तानोत्पादन करने का आदेश किया है, उसके असंख्य लाभ हैं। उन लाभों में से एक लाभ यह प्रकाश में आया है कि सन्तान ऐसी उत्पन्न होती है जो माता-पिता को सन्तोष दे सके, उसे पाकर मन संतुष्ट हो जाए।

कामोत्तेजना का जितना जोश पच्चीस वर्ष से नीचे होता है, उतना आगे चलकर नहीं रहता इस लिए इससे अधिक आयु में विवाह करने पर अमर्यादित वीर्यपात करने की मूर्खता उतनी नहीं होती, विवेक की मात्रा बढ़ने से वे उच्छृंखलताएं नहीं होतीं जिनकी नई उम्र में अधिक सम्भावना रहती है। इसके अतिरिक्त वीर्यरक्षा से शारीरिक एवं मानसिक बल बढ़ने का लाभ तो प्रत्यक्ष ही है।

गीता का संदेश -


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118