भगवान की प्रेरणा

November 1943

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(योगी अरविन्द घोष)

इस समय योगियों द्वारा ही संसार में एक विचित्र नवीन परिवर्तन भगवान करना चाहते हैं। योग के प्रकाश स्वरूप परिपूर्ण कार्य के ऊपर ही संसार की भविष्य सृष्टि निर्भर करती है- वह कार्य बड़ा विस्तृत है। पूर्ण योगी पुरुषों द्वारा जो कर्म तैयार होगा, वही भावी जगत का सच्चा काम होगा। पूर्ण योगियों को पैदा किये बिना कभी भी कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। अभी तक भक्ति एवं शक्ति को लेकर बहुत से काम हुए हैं, किन्तु पूर्ण ज्ञान का अभाव होने के कारण उनमें कोई भी काम स्थायी नहीं हुआ। भक्ति एवं शक्ति द्वारा संसार में जितने कार्य हुए हैं, वे भगवान के कार्यों के मामूली क्षुद्र अंश हैं। उनसे बहुत कुछ तैयार भी हो गया था, किन्तु वह पूर्ण ज्ञान का अभाव होने के कारण अब बिल्कुल नष्ट हो गया है। इस समय प्रयोजन है आध्यात्म ज्ञान का, प्रगाढ़ प्रेम एवं असाधारण शक्ति का, क्योंकि इनके बिना कर्म की परिपूर्णता नहीं होती। कर्म की पूर्णता इन्हीं के द्वारा ही होगी। ज्ञान पूर्ण होने पर ही कर्म पूर्ण मूर्ति प्राप्त होगी। आज उसी का साधन भी चल रहा है।

ऐ भारत वासियों! ज्ञान में आरुढ़ हो जाओ और उसी के सहारे नीरव साधना में चित्त लगाकर काम करते जाओ, बाहरी उत्तेजना में न फसो, अन्तर में भगवान की दिव्य मूर्ति प्रकट होने दो। स्मरण कर लो, तुम्हारी साधना से जो नई चीज पैदा होगी, वह संसार भर की एक अपूर्व सम्पत्ति होगी।


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