(स्वामी रामतीर्थ)
आत्मा असली जिन्दगी और चोखी नगदी है। यह अनुभव करो और ये भौतिक सुख तुम्हें खोजना शुरू करेंगे। जैसे पतिंगा जलती हुई ज्वाला के पास आता है, जैसे नदी समुद्र में मिलती है, जैसे छोटा कर्मचारी किसी महान सम्राट का आदर सम्मान करता है, ठीक उसी तरह सुख तुम्हारे पास तब आयेंगे जब तुम अपने सच्चे स्वरूप, अपने परमेश्वरीय प्रताप को, सच्चे तेजस्वी आत्मा को पूरी तरह से जान और अनुभव कर चुकोगे।
लोग कहते है- “हम चाहते हैं जीवन! कोरी कल्पनायें हमें नहीं चाहियें।” अरे, जीवन क्या वस्तु है? तुम कौन सा जीवन चाहते हो? स्वप्नावस्था का, या गाढ़ निद्रावस्था का, या जागृत अवस्था का? यह सब तो केवल दिखाऊ हैं। वास्तविक सच्चा जीवन तुम्हारा अपना आपा वा आत्मा का है। ऐसे कठोर नियम हैं जो इन्द्रियों के द्वारा तुम्हें सदा विषयानन्द न भोगने देंगे। अपने आपको इन्द्रियों का दास बनाकर इन्द्रिय लोक के हाथ बेचकर क्या तुम्हारे लिए सुखी होना सम्भव है। नहीं यह असम्भव है। प्रकृति के निर्दय कानून इन्द्रियों के भोग में तुम्हें सुखी न होने देंगे।
मनुष्य जब तक मेले से दूर है, तभी तक बाजार का हल्ला सुनता रहता है किन्तु जब बाजार में आ जाता है तो उसे हल्ले की तरफ ध्यान नहीं रहता। इसी तरह जब तक मनुष्य ईश्वर से दूर है तभी तक तर्क-वितर्क करता है, किन्तु पास आने पर सब भूल जाता है।