अन्न जल की तरह जीवन की प्रधान आवश्यकताओं में निद्रा का स्थान है। दिन भर काम करने की थकान निद्रा द्वारा पूरी होती है और दूसरे दिन के लिए नवीन बल संचय होता है। गहरी निद्रा का आनन्द बड़े-बड़े ऐश्वर्यों से अधिक मूल्यवान है। किन्तु कितने ही व्यक्ति इस ईश्वरदत्त महाप्रसाद का पूरा-पूरा उपभोग नहीं कर पाते। उन्हें अल्प और अधूरी निद्रा आती है, जिससे व्यय हुई शक्तियों की पूर्ति नहीं हो पाती इसलिए सदा उदासी, थकान, आलस्य, अनुत्साह और बेचैनी घेरे रहती है। शरीर टूटता रहता है और किसी काम पर मन ही नहीं लगता। अनिद्रा के कारण जीवन अवधि घटती है और स्वास्थ्य गिरता है। जिन्हें अधूरी नींद आती है उन्हें स्वप्न बहुत आते हैं और पेट में कब्ज भी हुआ तो डरावने सपने उन्हें भयभीत करते रहते हैं। सचमुच अल्प और अधूरी निद्रा आना एक बुरी विपत्ति है। इस विपत्ति से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर फुरिण्टन ने कुछ महत्वपूर्ण उपाय बताये हैं। जो नीचे दिये जाते हैं-
(1) सदा खुली हवा में सोओ। यह भय मत करो कि सर्दी लग जायेगी या जुकाम हो जायेगा। सर्दी से बचने के लिए कपड़े रखो। पर मुँह खुला रखो। बंद मकानों में दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द करके सोने से मस्तिष्क पर विषैला प्रभाव पड़ता है जिससे निद्रा कम हो जाती है।
(2) चारपाई पर अकेले सोओ। बहुत छोटे बालक माता के पास सो वे। इस अपवाद को छोड़कर घने से घने मित्रों को भी एक चारपाई पर रात न बितानी चाहिए। पति-पत्नी को भी निद्रा के समय अलग-अलग ही सोना चाहिए। दो व्यक्तियों के साथ सोने से उनकी शारीरिक गर्मी एवं अंग-संचालन क्रिया से दूसरे के ऊपर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है जिससे निद्रा के योग्य शिथिलता ठीक तरह नहीं आ पाती।
(3) बिस्तर साफ रखो। ओढ़ने-बिछाने के कपड़े स्वच्छ रहने चाहिएं। जो कपड़े शरीर को छूते हैं, उनका हफ्ते में एक बार धुलना आवश्यक है। नित्य धूप में सुखा लेना तो बहुत ही जरूरी है। तकिया ऊँचा न होना चाहिए जहाँ तक हो सके। बिना तकिये के सोने की आदत डालो। सीधे सोओ, मेरु दंड को बहुत मत झुकाओ। ओढ़ने-बिछाने के लिए जितने कम कपड़ों में हो सके काम चलाओ।
(4) निद्रा नाश का सबसे बड़ा कारण पाचन क्रिया सम्बन्धी है। यदि पेट भरा हुआ हो और भोजन पच न पाया हो तो अच्छी नींद न आवेगी। वह भोजन वायु पैदा करेगा और वह वायु मस्तिष्क में हलचल उत्पन्न करके अच्छी नींद न आने देगी। इसलिए सोने के समय से चार घण्टा पूर्व भोजन कर लेना चाहिए। संध्या के भोजन में भारी, गरिष्ठ, चरपरी, मसालेदार, मादक और उत्तेजक वस्तुएं कदापि न लेनी चाहिएं। हल्का, सादा, सुपाच्य और अल्प मात्रा में संध्या का आहार लेना चाहिए।
(5) सोने से आध घण्टे पूर्व नंगे बदन खुली हवा में जल्दी-जल्दी टहलते हुए वायु स्नान करना चाहिए। यहि सर्दी अधिक हो तो एक पतला कपड़ा ओढ़कर वायु स्नान करना उचित है।
(6) कई लोगों को सोते समय दिमाग पर अधिक जोर न डालने वाली पुस्तकें पढ़ने से जल्दी नींद आती है। जिन्हें यह प्रयोग हितकर हो, वे इसका प्रयोग कर सकते हैं।
(7) सोते समय शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें। डॉक्टर लाटसन इस उपाय को बहुत ही विश्वसनीय बताते हैं। उनका कथन है कि -सोते समय ऐसी भावना करनी चाहिए- मानो किसी नीले रंग के अथाह सागर पर तैरते हुए हम बहे जा रहे हैं। सब अंगों को बिल्कुल शिथिल कर देने और नीले जल का ध्यान करने से निद्रा बहुत जल्द आती है।
(8) सोने से पूर्व गहरी श्वास-प्रश्वास क्रिया करनी चाहिए। झटका देकर जल्दी-जल्दी साँस लेने की जरूरत नहीं है। बड़ी शान्ति, स्थिरता और सावधानी से लंबा गहरा और पूरा श्वास धीरे-धीरे खींचना चाहिए और उसी तरह धीरे-धीरे पूरा श्वास छोड़ना चाहिए। दस-पन्द्रह मिनट इस क्रिया को करते रहने से निद्रा आने लगती है।
(9) आत्म सूचना का प्रभाव मस्तिष्क पर अवश्य पड़ता है। चारपाई पर पड़ने के बाद मन ही मन ऐसी दृढ़ भावना करनी चाहिए कि मुझे गहरी निद्रा आ रही है, पलकें भारी हो रहे हैं, आँखें झपक रही हैं, अब नींद में ही जा रहा हूँ। कल्पना के साथ-साथ व्यवहार रूप में भी नींद की बनावटी झपकियाँ लेनी चाहिएं, यह आत्म सूचना निद्रा बुलाने में अव्यर्थ साबित होती हैं।
(10) अक्सर भय, आशंका, चिन्ता, दुख एवं बुरे भविष्य की कल्पना से निद्रा उचट जाती है या अधूरी नींद आती है। इसलिए सोते समय अपने सुन्दर भविष्य की कल्पना किया कीजिए। धन सब से प्रिय वस्तु लगती है। यदि सोते समय धन की देवी लक्ष्मी जी की मनोहर मूर्ति का ध्यान किया जाए तो मस्तिष्क में शान्ति एवं संतोष प्राप्त होता है, जिससे निद्रा के शीघ्र आने में बहुत सहायता मिलती है।
पाठक इन उपायों को काम में लाकर गहरी और पूरी निद्रा का आनन्द अनुभव कर सकते हैं।