प्रभु नाम का स्मरण

November 1943

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(ऋषि दयानन्द)

“यस्म नाम महद्यशः” यजु अ. 32 मं. 3

परमेश्वर का नाम लेना बड़े यश अर्थात् धर्मयुक्त कामों का करना हैं। जैसे ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर, न्यायकारी, दयालु, सर्वशक्तिमान आदि नाम परमेश्वर के गुण कर्म स्वभाव से हैं। जैसे ब्रह्म से बड़ा परमेश्वर ईश्वरों का ईश्वर। ईश्वर सामर्थ्य युक्त न्यायकारी कभी अन्याय नहीं करता। दयालु सब पर कृपादृष्टि रखता, सर्वशक्तिमान अपने सामर्थ्य ही से सब जगत की उत्पत्ति स्थिति प्रलय करता, सहायता किसी की नहीं लेता, ब्रह्मा विविध जगत के पदार्थ का बनाने हारा, विष्णु सब में व्यापक होकर रक्षा करता, महादेव सब देवों का देव, रुद्र प्रलय कर हारा आदि नामों के अर्थों को अपने में धारण करें अर्थात् बड़े कामों से बड़ा हो, समर्थों में समर्थ हो सामर्थ्यों को बढ़ता जाए, अधर्म कभी न करें, सब पर दया रखे, सब प्रकार के साधनों को सामर्थ्य करे, शिल्प विद्या से नाना प्रकार के पदार्थों को बनावे, सब संसार में अपने आत्मा के तुल्य सुख दुख समझे, सब की रक्षा करे, विद्वानों में विद्वान होवे, दुष्ट कर्म और दुष्टकर्म करने वालों को प्रयत्न से दण्ड और सज्जनों की रक्षा करे। इस प्रकार परमेश्वर के नामों का अर्थ जानकर परमेश्वर के गुण कर्म स्वभाव के अनुकूल अपने गुण, कर्म, स्वभाव को करते जाना ही परमेश्वर का नाम स्मरण है।


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