पूर्वजों की दुहाई देने से क्या लाभ?

November 1943

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक बार एक व्यक्ति नौकरी की तलाश में किसी सरकारी दफ्तर में पहुँचा। पूछने पर उसने कहा कि मैंने दो तीन पुस्तकें अंग्रेजी की पढ़ी हैं और कुछ हिन्दी जानता हूँ। दफ्तर के अफसर ने कहा- हमारे यहाँ एक चपरासी की जगह खाली है, तनख्वाह 12) मासिक मिलेगी, चाहो तो नौकरी कर सकते हो।

उस व्यक्ति ने मैनेजर से कहा- हुजूर, मेरे पिता तहसीलदार थे, बाबा कलेक्टर थे, परदादा कप्तान थे, मैं इतने ऊंचे खानदान का हूँ। वे लोग बड़ी बड़ी तनख्वाहें पाते थे और राजदरबार में आदर होता था, फिर मुझे इतनी छोटी हैसियत की और कम तनख्वाह की जगह क्यों मिलनी चाहिए?

अफसर ने कहा- आपके उच्च खानदान का मैं आदर करता हूँ और आपके उन प्रशंसनीय पूर्व पुरुषों की कद्र करता हूँ पर खेद है कि ऐसे नर रत्नों के घर में आप जैसे अयोग्य पुरुष पैदा हुए जिन्हें चपरासी से ऊंची जगह नहीं मिल सकती। नौकरी आपको करनी है, इसलिए आपकी योग्यता के अनुरूप ही वेतन मिलेगा, खानदान या पूर्व-पुरुषों का बड़प्पन इसमें कुछ भी काम नहीं आ सकता।

हम लोग अपने को ऋषियों की संतान कहते हैं, अपने जगद्गुरु होने का दावा करते है, और तरह तरह से प्राचीन गाथाओं के आधार पर अपने को बड़ा साबित करते हुए यह आशा रखते हैं कि हमें वही स्थान मिले जो हमारे पूर्वजों को प्राप्त था। परन्तु हम यह भूल जाते हैं कि जितनी योग्यता, कर्मनिष्ठा पूर्वजों में थी, क्या उसका थोड़ा अंश भी हममें है? यदि नहीं है तो हम अपमान और अधोगति के ही योग्य हैं जो कि आज प्राप्त है। पूर्वजों का गौरव उस समय तक प्राप्त नहीं हो सकता जब तक कि वैसे ही पराक्रम करने का साहस अपने अन्दर उत्पन्न न कर लें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118