सारी आपदाएं, सारे दुःख क्लेश और कुछ नहीं हैं ये केवल स्वप्न हैं। हमारी कठिनाइयाँ समान हमें दुर्लभ, सारी वस्तुएं भयंकर और अन्धकार मय प्रतीत होती हैं, परन्तु यह सच नहीं केवल माया है। भय मत करो, यह नष्ट हो चुकी है। इसे पीस डालो, यह तिरोहित हो चुका है इसे पद दलित कर डालो, यह लुप्त हो जायगी। डरो मत, इस बात की चिन्ता मत करो कि हमें कई बार असफल होना पड़ा है। कोई परवा नहीं। समय अनन्त है। आगे की ओर पैर बढ़ाये बार-बार प्रयत्न करते रहो, अन्त में चेतना आकर रहेगी।
आपकी रक्षा करने वाला इस संसार में और कोई नहीं है। किसी भी मित्र में ऐसी शक्ति नहीं है यह है। सच तो यह है कि संसार में आप ही अपने सबसे बड़े शत्रु और आप ही सबसे बड़े मित्र हैं। हर आपदाओं और दुर्बलताओं के ऊपर आत्मा का प्रकाश डालिए और उसके उजाले में वास्तविक रूप को पहचानिए। स्मरण रखिए प्रकाश के साथ अन्धकार नहीं रह सकता और न आत्म ज्ञान के डडडड का अस्तित्व कायम रह सकता है।
वर्ष- 4 सम्पादक - आचार्य श्रीराम शर्मा अंक -11