ईसप की नीति शिक्षा

November 1943

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(1)

एक चोर कहीं से मुर्गा चुरा लाया और घर पर लाकर उसे मारने लगा। मुर्गा बड़ी विनती के साथ जोर से कहने लगा - मैं तो बड़ा उपकारी हूँ, लोगों को समय पर जगाकर उनकी निस्वार्थ सेवा करता हूँ, कृपया मुझे मत मारिये। चोर ने कहा - “सोते हुए लोगों को जगाकर तू ही मेरे काम में बड़ी बाधा डालता है, इसलिए तुझे तो और भी जल्दी मारूंगा।”

दुष्ट लोग सज्जनों को अपने मार्ग का काँटा समझ कर उनसे घोर शत्रुता रखते हैं।

(2)

एक राहगीर कुएं की मुँडेर पर पड़ा सो रहा था। उधर से तकदीर देवी उड़ती हुई निकली। उन्होंने मुसाफिर को स्वप्न में कहा- मूर्ख, धीरे से उठ बैठ और कुएं से हटकर सो, नहीं तो करवट बदलते ही कुएं में गिर पड़ेगा और व्यर्थ ही मुझे दोष देगा।

अपनी मूर्खता से लोग अनेक विपत्तियाँ बुला लेते हैं और फिर भाग्य को दोष देते हैं।

(3)

गाड़ी के पहिये चें-चें करते हुए चल रहे थे। गाड़ीवान ने कहा-बैल जो बोझा ढोते हैं चुप हैं पर यह दुष्ट बिना कारण चिल्ल पों मचा रहे हैं।

काम करने वाले चुप रहते है और निकम्मे बड़ बड़ाते हैं।

(4)

एक कोयले वाले के पास बड़ा मकान था उसने खाली हिस्से में धोबी को किरायेदार रख लिया। धोबी ने देखा कि कितना ही बचकर क्यों न रहा जाए कोयले की गर्द उड़कर जरूर आती है और उसके धुले हुए सफेद कपड़ों को मैला कर देती है।

धोबी ने उसका घर यह कहते हुए खाली कर दिया कि जिस स्थान पर जो रहता है वह वहाँ के असर से बच नहीं सकता।


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