सदा प्रसन्न रहिए!

April 1943

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(श्री मनोरंजन प्रसाद, बी. एस. पी.)

हँसना और बराबर हँसते रहना सजीवता का लक्षण है। मनहूसियत मौत का नाम है। जो हँसता है, उसके पास बहुत बड़ी ताकत है। जो रोता है, वह मुर्दे से भी गया-बीता है। अगर जीवन में सजीवता चाहते हो तो खुलकर हँसा करो।

हँसना कभी बेकार नहीं हुआ करता। हँसना एक व्यवसाय है। इससे दोस्त-मित्र खुश हो जाते हैं। अपरिचितों को भी प्रसन्न करने के लिये हँसना एक अद्भुत मंत्र है। हँसना जीवन का प्रकाश है हँसने से मनुष्य की अन्तःशक्ति जाग उठती है। जितनी देर तक आदमी-हँसता रहता है, उतनी देर तक मृत्यु भागकर कहीं दूर चली जाती है। गरज यह कि आदमी जितना हँसता है, आयु उतनी ही बढ़ती जाती है। इसलिए, अगर दीर्घायु होना चाहते हो तो खूब हँसो, दीर्घ काल तक हँसो।

मुँह फुलाये चुपचाप बैठे रहना मृत्यु की प्रतीक्षा करना है। इससे मनुष्य की सक्रियता कम होती जाती है, रक्तप्रवाह बन्द होने लगता है और अंग अंग में शिथिलता आने लगती है। मनहूसियत घर-द्वार में, अपने पराये में, इर्द−गिर्द सर्वत्र मुर्दनी पैदा करती है। यह समस्त वायुमण्डल को मनहूस बना देती है। इसलिये, अगर इन तमाम इल्जामों से बचना चाहते हो तो खूब हँसो।

सुख में सभी हँसते हैं। दुख में हँसना बिरलों बहादुरों का काम हैं और, सच तो यह है कि सुख दुख के कारण आदमी प्रसन्न और चिन्तित नहीं होता, बल्कि प्रसन्नता के कारण सुखी और चिन्ता के कारण दुखी होता है। इसलिये, अगर सुखी रहना चाहते हो तो सदा प्रसन्न रहो और तमाम दुनिया से अलग होकर हँसा करो। हँसो और हँसकर चिन्ता का दरवाजा बन्द कर दो। फिर तुम्हें दुखी करने वाला ढूँढ़े भी कोई न मिलेगा।

हँसने का नाम धन है, रोने का नाम है निर्धनता। हँसना शरीर का धन है, आत्म का धन है, घर का धन है और समस्त समाज का धन है। युवकों का अपना कलाकार हैन्स ऐंडरेशन-खूब हँसा करता था और जिस रास्ते से वह चलता था वह रास्ता भी हँस उठता था। रावर्ट स्टीवेन्सन भी जिन्दगी भर हँसता रहा। उसका कहना है कि हँसना अँधेरी कोठरी में उजाला कर देता है। एक जगह वह कहता है-”मनहूस अगर तुम्हें सौ रुपये दे, तो भी उससे न मिलों। अगर कोई हँस मुख आदमी सौ रुपये खर्च करने पर भी मिले तो ढूँढ़ कर उससे मिलों। सौ रुपये खर्च करने की जरूरत नहीं। जहाँ कहीं रहो, हँसते रहो। फिर तो न मालूम कितने ही हँसने वाले मिल जायेंगे। सिंहासन पर रहो तब भी हंसो खानाबदोशी और मुफलिसी की हालत में रहो तो भी हंसो।

जिन्दगी बसर करने का सबसे सुन्दर तरीका है हँसना। जागों तब भी हंसो, सोओ तब भी हंसो जो काम करना हो उसे हंसकर शुरू करो बैठो तो हंसो और दोस्तों को हंसाते रहो, चलो और हंसते चलो हंसते-हंसते तुम बड़ी से बड़ी दरिया पार कर सकते हो, पहाड़ों की ऊंची से ऊंची चोटियों पर हंसी-खेल में ही चढ़ जा सकते हो।

कोई चीज किसी को दो तो हंसकर दो। इससे तुम्हारा तुच्छ उपहार भी बहुमूल्य हो जायगा यदि कोई मनुष्य तुम्हें कोई चीज़ दे तो उसे हंसकर स्वीकार करो। इससे तुम्हारा मान बढ़ जायगा और देने वाले का उत्साह भी दूना चौगुना हो जायगा।

अगर तबीयत में मनहूसियत आ गयी हो, भीतर की स्फूर्ति सो गयी हो, तो हंसने का अभ्यास करो यह अभ्यास एक दिन स्वभाव स्वरूप धारण कर लेगा। अगर तुम्हें हंसने का अभ्यास करते देख कुछ लोग हंसे तो इसमें क्या बुरा है? उनके साथ तुम भी हंसो।

रोज सवेरे उठो-सूरज निकलने के पहले। आइने में चेहरा देखो, उसे देखकर हंसो। पानी से मुँह धोकर आइने में चेहरा देखा और हंसों! चिड़ियों के चहकने से पहले ही तुम चहकना शुरू कर दो। शौचादि से निवृत्त स्नान करो। फिर कुछ हल्का जलपान कर पढ़ने के लिये बैठ जाओ। कुछ पढ़ो और फिर मनन करो। जो कोई काम करना हो, जवां मर्द की तरह करो। दिन में कई बार आइने में चेहरा देखो और हंसो। कोई चीज़ खाओ तो कुछ लोगों के साथ खाओ। खूब चबा चबाकर खाओ, बाँट-बाँटकर खाओ, हंस हंसकर खाओ अकेले खाने में कोई मजा न आयेगा। खाने के याद बैठकर हंसा करो। हंसना सबसे अच्छी कसरत है, सबसे बड़ी दया है।

तुमने महात्मा गान्धी को देखा होगा। सभा-मंच पर खड़े होते ही वे हंस पड़ते हैं और फिर भाषण समाप्त करते समय भी हंसते हैं। महात्माजी की बिनोद प्रियता लोक प्रसिद्ध है। पं जवाहरलाह नेहरू भी प्रायः हंसते नज़र आते हैं। सरदार पटेल बाबू राजेन्द्र प्रसाद और खान अब्दुल गफ्फार खाँ की विनोदप्रियता प्रसिद्ध है। सभी महापुरुष विनोदी होते हैं। विनोद के सहारे वे हंसते खेलते बड़े बड़े काम कर डालते हैं और एक दिन आता है जब वे आदर्श बन जाते हैं। प्यारे किशोरों, तुम्हीं पीछे क्यों रहोगे। विनोदी बनो और हंसो।

-किशोर


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