ईसप की नीति शिक्षा

April 1943

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(1)

एक कुम्हार ने एक गधा खरीदा। पर उसने यह शर्त कर ली कि रुपया तब दूँगा जब खरीदे हुए गधे का स्वभाव पहचान लूँगा। बेचने वाला राजी हो गया। कुम्हार गधे को अपने बाड़े में ले गया और स्वतंत्रतापूर्वक रहने के लिए छोड़ दिया। उस बाड़े में जो गधा सबसे अधिक खाने वाला और आलसी था उससे यह नया गधा मिल गया। इस पर कुम्हार उसे खींचता हुआ उसके मालिक के पास लौटाने ले गया। मालिक ने पूछा-भाई, तुमने इतनी जल्दी इसका स्वभाव कैसे पहचान लिया ? इस पर कुम्हार ने कहा जिस गधे के साथ इसने हेल मेल बढ़ाया मैंने समझ लिया कि यह उसी का दूसरा भाई है।

मनुष्य की रुचि से उसका स्वभाव पहचाना जाता है।

(2)

एक गीदड़ आहार की खोज में इधर उधर घूम रहा था कि एक वृक्ष के खोखले में किसानों का कुछ खाने का सामान रखा हुआ मिल गया। गीदड़ ने स्वाद स्वाद में उसे इतना खा लिया कि उसका पेट फूल गया और खोखले से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। पेट फूलने के दर्द फँस जाने के कष्ट और किसान के भय से खोखले में बैठा हुआ वह काँय, काँय कर रहा था कि एक दूसरा गीदड़ वहाँ आ निकला। उसने सलाह दी कि कुछ समय तक इसी खोखले में बैठकर उपवास करो। जब पेट का मोटापा कम हो जायगा तब बाहर निकल सकोगे।

अन्याय से बहुत धन इकट्ठा करने पर विपत्ति आती है और वह विपत्ति तभी दूर हो सकती है जब त्याग, दान और उपवास का कार्यक्रम अपनाया जाय।

(3)

एक ज्योतिषी रात के समय ग्रह नक्षत्रों की परीक्षा करने के लिए मुँह ऊपर को उठाकर इधर उधर घूमा करता था। एक बार वह इसी तरह चल रहा था तो गहरे गड्ढे में गिर पड़ा। उसका चिल्लाना सुनकर लोग इकट्ठे हुए और उसे बाहर निकाला गड्ढ़े में क्यों कर गिर पड़े यह पूछने पर ज्योतिषी ने सब हाल सुना दिया। इस पर लोगों ने उससे कहा-आकाश की बातें जानने से पहले आपको यह जानना चाहिए कि जमीन पर क्या है।

परलोक सुधारने से पहले इस लोक को सुधारने की भी चिन्ता करनी चाहिए।

(4)

एक बार देवदारु के वृक्ष ने ब्रह्मा से फरियाद की, कि भगवान्! मैं कितना उपकारी हूँ, दूसरों के उपकार के लिये सदैव तैयार रहता हूँ, परन्तु लोग इसका कुछ भी खयाल नहीं करते, उनकी कुल्हाड़ी सबसे अधिक मुझी पर चलती है। ब्रह्माजी ने उत्तर दिया-बेटा, तुम कुल्हाड़ी की चोट से बच सकते हो बशर्ते कि दूसरों के उपकार में लगने का अपना स्वभाव छोड़ दो।

परोपकार में प्रवृत्त रहने वालों को कष्ट सहन करने ही पड़ते हैं।

(5)

एक साँप ने अपने बच्चे से कहा ऐसा टेढ़ा-2 क्या चलता है? सीधा चल। बच्चे ने कहा-पिता जी, आपकी आज्ञा मानूँगा पर आप जरा वैसा चल कर तो दिखाइये।

दूसरों पर उपदेश का प्रभाव तब तक नहीं पड़ सकता जब तक कि अपना आचरण भी वैसा ही न हो।


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