धूम्रपान से स्वास्थ्य की बर्बादी

April 1943

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(लेखक- श्री परमेश्वर सिंह)

आजकल धूम्रपान करना अर्थात् बीड़ी, सिगरेट और चुरुट पीना सभ्यता का अंग हो गया है अथवा यों कहें कि यह भी एक फैशन में दाखिल हो गया है। विदेशों में इसका प्रचार अधिक है, परन्तु हमें उसकी आलोचना करनी नहीं, हमें तो वह दिखाना है कि गरीब भारतवर्ष में धूम्रपान का प्रसार किस गति से बढ़ रहा है और इसका कैसा अनर्थकारी प्रभाव हमारे देश के बच्चों, नव जवानों और विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। आप देश के किसी भाग में चले जाइये, सर्वत्र आप सिगरेट और बीड़ी का व्यापक प्रचार पायेंगे। सिगरेट कुछ कीमती होती है, चुरुट उससे भी अधिक कीमती होती है, इसलिए इन दोनों की जगह कुछ दिनों से बीड़ी ने ले रखी है। बीड़ी बनती है तम्बाकू की पत्तियों को काट-काटकर। इसी से यह जाना जा सकता है कि इस तम्बाकू का स्वास्थ्य पर कितना बुरा असर पड़ता है। यह बीड़ी, सिगरेट तथा व्यापक धूम्रपान का ही परिणाम है कि हमारे युवकों के अधरों की लाली कालिमा में बदल जाती हे, उनके कलेजे में दर्द उठा करता है, और जलन हुआ करती है और वे अकाल मृत्यु को प्राप्त होते जाते हैं।

वैज्ञानिकों का मत है कि पान, तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, चुरुट, चाय, कोको आदि वस्तुएं विषैली होती हैं, इनमें कई प्रकार के भयंकर विष पाये जाते हैं, जिनमें निकाटाइन एकोलिन और पिपराइम मुख्य हैं। पहले प्रकार का विष संखिया से कहीं ज्यादा भयंकर है। यदि अधिक मात्रा में उसका व्यवहार किया जाय, तो मृत्यु एकदम निकट पहुँच जाती है।

यह तो वैज्ञानिकों का मत हुआ। डाक्टरों का मत यह है कि ऊपर कही गयी जहरीली वस्तुओं से तमाम रोग पैदा होते हैं। वे इस सिलसिले में कहते हैं कि- इन वस्तुओं में जो विष पाये जाते हैं, वे अजीर्णता, उदरामय, बालों का असमय में पकना, ज्ञान तन्तुओं को नष्ट करना, हृदय की गति मन्द करना, स्वर भंग, लकवा, मृगी, अपस्मार, धनुर्वात, नामर्दी, बम्ध्यात्वा आदि रोग पैदा करते हैं और अर्से तक इनका इस्तेमाल करने से स्मरण शक्ति, योजनात्मक शक्ति तथा व्यक्ति विशेष के लिये स्वाभाविक गुणों का नाश हो जाता है।

यूनों विज्ञान के पण्डित ने तो इन जहरीली चीजों से होने वाली हानियाँ बतलाते हुए कहा है कि ‘मस्तिष्क तथा स्नायु सम्बन्धी दुर्बलता की दृष्टि भी अधिक धूम्रपान से ही होती है। यही नहीं, संसार के सभी छोटे-बड़े चिकित्सकों का यह निर्विवाद मत है कि ‘तम्बाकू अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने से अनेक प्रकार के रोग पैदा होते हैं, खासकर हृदय और कलेजे की बीमारियाँ तो इसके परिणाम स्वरूप पैदा होती हैं तम्बाकू मानसिक शक्ति भी नट कर देती है।

चूँकि युवावस्था के प्रतिनिधि छात्रों में भी यह बीमारी- हाँ, यही बीड़ियाँ पी पीकर मुँह से फिक फिक धुआँ फेंक कर मजा लेने की बीमारी- जबर्दस्त रूप धारण कर चुकी है और धीरे-धीरे उन्हें विनाश के उस कुण्ड में डालती जा रही हैं, जहाँ से उनके सन्त्राणका कोई मार्ग नहीं, इसलिए यहाँ यह बताना आवश्यक है कि किस प्रकार धूम्रपान के प्रभाव से तेज से तेज बुद्धि के छात्र को भी जीवन संग्राम में हार खानी पड़ी है। हमारे पास इस सम्बन्ध में जो आँकड़े हैं, उनसे यह पता चलता है कि बीड़ी-सिगरेट पीने वाला कोई भी छात्र परीक्षाओं में कभी सर्वोच्च स्थान नहीं प्राप्त कर सकता है। हावर्ड यूनिवर्सिटी का बिगत 90 वर्ष का इतिहास इस बात का साक्षी है कि उक्त यूनिवर्सिटी में इस बीच कोई भी धूम्रपान करने वाला छात्र किसी भी परीक्षा में सर्वप्रथम स्थान नहीं पा सका है।

इस दुर्व्यसन का मनुष्य, विशेषतया नौजवानों की बुद्धि पर ही घोर घातक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि इससे नैतिकता पर भी गहरा आघात होता हैं। इसके ही प्रभाव का परिणाम होता है कि अच्छे विद्यार्थी भी बिगड़ जाते हैं और कुछ ही दिनों की धूम्रपान की आदत के परिणाम स्वरूप विनाशोन्मुख दिखाई पड़ते हैं। इसकी सत्यता का प्रमाण इस भारतवर्ष के अगणित स्कूलों और कालेजों में आप पा सकते हैं, और चाहे तो कोई प्रभाव इसका हो वह तो प्रकट है कि इसके सेवन से दीर्घ जीवन होना कठिन ही नहीं, असम्भव है। जो व्यसन के नाम पर घातक वस्तुओं का उपयोग करता है, वह अधिक दिनों तक कदापि जीवित नहीं रह सकता।

इस सिलसिले में यह बात देना अनुचित न होगा कि पाश्चात्य देशों में ऐसे अनेक महान् पुरुष हो गये हैं और आज भी विद्यमान हैं, जिन्होंने आजीवन बीड़ी सिगरेट आदि जहरीली चीजों का इस्तेमाल नहीं किया और वे दीर्घ काल तक स्वस्थ रहे और मरे भी सुन्दर स्वास्थ्य लिये हुए। जानकारों का यह कथन है कि जो तम्बाकू पीते या धूम्रपान करते वे ही नहीं, वरन् उनकी सन्तान भी दीर्घजीवन के सुख से वंचित रहती है।

लत बहुत बुरी चीज है। यह तो सभी जानते हैं कि बचपन की लत जीवन भर जारी रहती है और बचपन का अभ्यास आजीवन छूटने वाला नहीं है। इसलिये जो बच्चे अपने बाप दादों की देखा देखी तम्बाकू खाने और सिगरेट बीड़ी पीना सीख लेते हैं, वे आगे चलकर नष्ट हो जाते हैं। धूम्रपान की प्रथा पश्चिम से हमने सीखो और तम्बाकू खाना व पीना मुगलों के जमाने में भारतवासियों ने जाना, किन्तु हमें यह देखकर हर्ष होता है कि पाश्चात्य देशों ने इसका घातक प्रभाव अनुभव किया है और कहीं कहीं तो कानून बनाकर धूम्रपान निषद्धि घोषित कर दिया गया है। अभी हाल की बात है, चीन की सरकार ने इस प्रकार का कानून बना दिया है कि 20 वर्ष से कम उम्र के बालक धूम्रपान करे, यदि वे ऐसा करते पाये जायेंगे, तो उन्हें सख्त सजा मिलेगी वहाँ तो सिगरेट पीना या बेचना जुर्म करार दिया गया है। इसी प्रकार कनाडा तथा उत्तर अमरीका के कई प्रांतों की सरकारों ने भी यह घोषित कर दिया है कि 26 वर्ष के बालकों के हाथ सिगरेट बेचना जुर्म हैं। सैक्सनी के शिक्षा विभाग ने हाल ही में एक गश्ती चिट्ठी जारी कर स्कूल अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे सोलह साल की उम्र के बालकों को यदि धूम्रपान करते पायें, तो उन्हें सख्त सजा दी जाय।

जागृति और सुधार के युग में, जब कि सभी राष्ट््र को सबल बनना का आरुढ़ हैं, भारत अपनी भी इस प्रश्न पर चुप्पी साधे हुए हैं। हालाँकि वह अच्छी तरह यह देख रहा है कि प्रतिवर्ष न जाने कितने नौजवान और बच्चे धूम्रपान की बेदी पर जीवन बलिदान कर रहे हैं और विनाश के मुँह में जा रहे हैं। सिगरेट आया है, तब से तो इसका प्रचार और भी ज्यादा बढ़ गया है, क्या शहर और क्या देहात, सर्वत्र बच्चों और युवकों के मुँह से धुआँ निकलने देखते हैं। विद्यार्थी तो इस दुर्व्यसनों को अपनाने के लिये चोरी तक किया करते हैं। इस दशा में सरकार और समाज पतियों का यकर्तव्य है, यह बतलाने की आवश्यकता नहीं है। 1632 अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन ने इस बुराई पर प्रकाश डालते हुए सरकार का ध्यान इसको मिटाने के लिये कानून बनाने की और आकृष्ट किया था।

अब उपेक्षा करने का समय नहीं है। जिनका सार्वजनिक जीवन के साथ सम्बन्ध है वे अच्छी तरह जानते हैं कि बीड़ी, सिगरेट, चुरुट तथा तम्बाकू का स्वास्थ्य पर कितना घातक प्रभाव पड़ता है उनका यह कर्तव्य है कि इस व्यापक एवं विधातक बुराई को समूल नष्ट करने का प्रयत्न करें।


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