(ले-श्री रामकरण सिंह वैद्य, गोरखपुर)
सदाचार-श्रेष्ठ आचरण-अच्छा चालन चलन, यह मानव जीवन का बहुमूल्य खजाना है। सृष्टि के आदि काल से ऋषि मुनियों से लेकर आधुनिक विद्वानों तक यह बात स्वीकार होती आई है कि मनुष्य का गौरव इसमें हैं कि उसका आचरण श्रेष्ठ हो। भलाई, नेकी, उदारता, सेवा, सहायता, सहानुभूति से परिपूर्ण हृदय वाला व्यक्ति सदाचारी कहा जाता है, उसके बाह्य आचरण ऐसे होते हैं, जो दूसरों को स्थूल या सूक्ष्म रीति से निरन्तर लाभ ही पहुँचाते रहते हैं। वह एक भी कार्य ऐसा नहीं करता, जिससे उसकी आत्मा को लज्जित होना पड़े, पश्चाताप करना पड़े या समाज के सामने आँखें नीची झुकानी पड़ें।
मनुष्य चाहे जितना विद्वान् चतुर धनवान, स्वरूप वान, यशस्वी तथा उच्च आसन पर आसीन हो, परन्तु यदि उसका व्यवहार उत्तम नहीं तो वह सब व्यर्थ है, धूलि के बराबर है। खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा है, उस पर मीठे फल भी लगते हैं पर उससे दूसरों को क्या लाभ या धूप में तपा हुआ पथिक न तो उसकी छाया में शान्ति लाभ कर सकता है और न भूख से व्याकुल को उसका एक फल प्राप्त हो सकता है। जिसका आचरण श्रेष्ठ है वह किसी की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं धार्मिक उन्नति में जरा भी बाधा पहुँचाने वाला कार्य न करेगा वरन् उससे सहायता ही देगा।
आप अपने आचरणों को ऐसा रखिये, जिससे आपके माता पिता की कीर्ति में वृद्धि हो। आपको अपना मित्र कहते हुए दूसरे लोग गर्व अनुभव करें। छोटे लोग आपका उदाहरण सामने रख कर अपने आचरण को उसी साँचे में ढालने का प्रयत्न करें। स्मरण रखिए, सदाचार मानव जीवन का महान धन है। जो सदाचारी है, असल में वही सच्चा धनी है।