(महात्मा गाँधी)
बाईस तेईस साल की उम्र में मुझे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा हुई। मालूम हुआ कि वेदों का अभ्यास करने के लिए पन्द्रह वर्ष चाहिए, पर इसके लिए मैं तैयार नहीं था। मुझे मालूम हुआ- मैंने नहीं पढ़ा था कि गीता सब शास्त्रों का दोहन हे, कामधेनु है। मुझे बतलाया गया कि उपनिषद् आदि का निचोड़ 700 श्लोकों में आ गया है। थोड़ी संस्कृत की भी शिक्षा थी। मैंने सोचा कि यह तो सरल उपाय है मैंने अध्ययन किया और मेरे लिए वह बाइबिल, कुरान नहीं रही, माता बन गई। प्राकृतिक माता नहीं, ऐसी माता जो मेरे मर जाने पर भी रहेगी। उसके करोड़ों पुत्र और पुत्रियाँ बिना आपसी द्वेष भाव के उसका दुग्धपान कर सकते हैं। पीड़ा के समय वे माता की गोद में बैठ सकते हैं और पूछ सकते हैं कि यह संकट आ गया है। मैं क्या करूं? माता आपको उसका उत्तर दे देगी। अस्पृश्यता के संबंध में भी मेरे कितना हमला होता है, कितने लोग विपरीत हैं। मैं माता से पूछता हूँ क्या करूं? वेद आदि तो पढ़ नहीं सकता। वह कहती है, नवाँ अध्याय पढ़ ले। माता कहती है- “मैं तो उन्हीं के लिए पैदा हुई हूँ, मैं तो पतियों कि लिए हूँ।” इस तरह का आश्वासन वे ही पा सकते हैं जो सच्चे मातृभक्त हैं। जो सब उसी में से पान करना चाहते हैं वह उनके लिए कामधेनु है। कोई-कोई कहते हैं कि गीता बहुत गूढ़ ग्रन्थ है, लोक मान्य तिलक के लिए वह गूढ़ ग्रन्थ भले ही हो, पर मेरे लिए तो इतना ही काफी है। पहला दूसरा और तीसरा अध्याय पढ़ लीजिए बाकी में तो इसकी बातों को दुहराना मात्र है। इसमें भी थोड़े से श्लोकों में सभी बातों का समावेश है और सबसे सरल गीता माता में तीन जगह कहा है जो सब चीजों को छोड़कर मेरी गोद में बैठ जाते हैं उन्हें निराशा का स्थान नहीं, आनन्द ही आनन्द है।
गीता माता कहती है कि- पुरुषार्थ करो, फल मुझे सौंप दो। ऐसी मोटी-मोटी बातें मैंने गीता माता से पाई। मैं रोज-रोज उनसे कुछ न कुछ प्राप्त करता हूँ। इसलिए मुझे निराशा कभी नहीं होती। दुनिया कहती है कि अस्पृश्यता आन्दोलन ठीक नहीं, गीता माता कह देती है कि ठीक है। आप लोग प्रतिदिन सुबह गीता का पाठ किया करें। यह सर्वोपरि ग्रन्थ है। 18 अध्याय कण्ठ करना बड़े परिश्रम की बात नहीं। प्राणान्त के समय जब आँखें काम नहीं देती, केवल थोड़ी बुद्धि रह जाती है, तो गीता से ही ब्रह्म निर्वाण मिल जा सकता है।
मेरी समझ में गीता बहुत ही सरल ग्रन्थ है। जरूर ही इसमें कुछ मौलिक प्रश्न आते हैं, जिन्हें हल करना बेशक मुश्किल है, मगर गीता की साधारण शिक्षा को समझना कठिन नहीं। इसे सभी सम्प्रदाय प्रामाणिक ग्रन्थ मानते हैं इसमें किसी प्रकार की साम्प्रदायिकता नहीं है। थोड़े में यह संपूर्ण संयुक्त नीति शास्त्र है, यों तो यह दार्शनिक और भक्ति विषयक दोनों ही प्रकार का ग्रन्थ है। मैं अपनी यह सम्मति दुहराता हूँ कि हर हिन्दू लड़के और लड़की को संस्कृत जानना चाहिए मगर अभी तो कई जमानों तक करोड़ों आदमी संस्कृत से कोरे ही रहेंगे। केवल संस्कृत न जानने के कारण गीता की शिक्षा से वंचित रहना तो आत्मघात करना होगा।