(ले. श्री रामशरण दासजी पिलखुआ)
एक बार श्री स्वामी अद्वेतानन्द जी महाराज ने प्रवचन करते हुए एक घटना सुनाई थी। वे कहते थे, कि हमने एक खजानची को देखा। पहले जब लोग उसका स्वभाव नहीं जानते थे। तब किसी ने उसे रुपया दिया। खजानची ने रुपया देने वाले से पूछा यह रुपया कैसा है? उसने कहा यह आपके ‘हक’ का रुपया है। खजानची ने रुपया वापिस देते हुए कहा-’हमारा हक कैसा? हमें तो तनख्वाह मिलती है, हम रिश्वत कभी नहीं लेंगे।’ उसने कभी किसी से रिश्वत नहीं ली। एक दिन कोई मनुष्य अपना काम ठीक होने पर उनके घर पर एक मटका ईख का रस दे आया। खजानची साहब उस समय घर पर थे नहीं, उनकी माता जी ने इसे ले लिया। जब खजानची साहब घर पर आये तो उन्हें रस आने की बात मालूम हुई। उन्होंने माताजी को समझाया कि-यह चीज तो हमें डुबो दे सकती है। किसी की चीज़ हम मुफ्त क्यों लें? उन्होंने उस रस को गरीब लोगों में बंटवा दिया और अपने काम में उसकी एक बूँद भी न लाये।
किसी का अनीतिपूर्वक धन ग्रहण करने की इच्छा न करके अपनी धर्म उपार्जित कमाई पर निर्वाह करने वाले सच्चरित्र व्यक्ति किसी महात्मा से कम नहीं है।