बड़ा आदमी चाहे धन से हो चाहे पद से हो चाहे मान प्रतिष्ठा से हो उसका सब से बड़ा दुर्भाग्य यह है कि वह अंध और बहरा हो जाता है। वह अपनी आँखों से देख नहीं सकता। वह अपने कानों से सुन ही सकता। उसे अपने भक्तों, सेवकों या चाटुकारों की आँखों से देखना और उन्हीं के कानों सुनना पड़ता है। बड़ा आदमी बनने के पहले जितना ज्ञान वह पा सका था उतनी ही पूँजी से उसे अपना व्यापार चलाना पड़ता है बड़ा आदमी बनने के बाद तो सब उधार ही उधार उसे मिलता है। बड़ा आदमी बनना जितना अधिक सौभाग्य है उतना ही अधिक दुर्भाग्य है।
दरबारी लाल सत्य भक्त।