(श्रीमती-लिली.एल. एलन)
चिरकाल से हम दरवाजे-दरवाजे पर भीख माँग रहे हैं और भ्रमवश असत्य को सत्य समझ कर उस पर विश्वास कर रहे हैं। परन्तु दरअसल हम ऐसे है नहीं। सम्राटों के भी सम्राट परमात्मा की हम संतान-राजकुमार और राजकुमारियाँ हैं। अब हम द्वार-द्वार पर भीख न माँगेंगे। न किसी के सामने गिड़गिड़ायेंगे। अब हम अपने उन ईश्वरीय गुणों को प्राप्त करेंगे जो कि हमारी पैतृक सम्पत्ति है। हमारे सम्मुख स्वर्ग का द्वारा खुला हुआ है फिर हम बाहर ही क्यों खड़े रहें ? परमात्मा हमें इस छोटे जीवन की अपेक्षा एक बहुत विशाल जीवन में प्रवेश करने के लिए बुला रहा है। चलो बढ़ें और उसका निमंत्रण स्वीकार करें।
अपने को क्षुद्र और नीच समझना घातक है। हीनता और तुच्छता के विचार हमें हमारी वास्तविक शक्ति से वंचित किये हुए हैं। संसार में दुख और झगड़े भरे पड़े हैं। ऐसा सोचने से संसार सौंदर्य देखने वाला मानव हृदय निर्बल हो जाता है। असल में आदमी तुच्छ जीव नहीं है। यह संकल्प करे तो वह परमात्मा के पद को प्राप्त कर सकता है। हम अपने शरीर और मन के राजा हैं। अपनी प्रत्येक बात, कर्म और परिस्थिति के निर्माणकर्ता हैं। जिस दिन हम अपनी शक्ति सत्ता के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करते हैं। हमें चाहिए कि ठीक उसी क्षण से अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करने के लिए चल पड़ें।