शक्ति-वर्द्धक धनुरासन

August 1940

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(श्री योगिराज उमेशचन्द्र की बम्बई)

इस आसन में पहिले उलटे हो जाओ। फिर फेफड़े में यथेच्छ श्वाँस भर लो फिर दोनों पाँव के पीछे के भाग को पकड़ कर साथल का भाग तथा नाभी के ऊपर का भाग जमीन से ऊपर उठाओ। सिर और पैर जितने ऊपर उठें उतना उत्तम, जमीन पर सिर्फ पेट का ही भाग रहना चाहिए।

जितने समय श्वास रोक सको उतने समय तक सिर व पैर ऊपर अधर रखें और जब श्वांस रोके रखना असंभव प्रतीत मालूम पड़े तब सिर और पैर जमीन पर रखने के बाद दोनों नथुनों से श्वांस धीरे-धीरे बाहर निकालो। शुरू में अभ्यास करने वाले को फेफड़े में आधा श्वांस भरना चाहिए और चार पाँच दिन तक आजमाने के बाद पूरा श्वांस भरने में हर्ज नहीं। फेफड़ा कमजोर हो तो पहिले पूरा श्वांस भरने में जरा दर्द होता है।

आसन का परिमाण पहिले-दस दिन तक सुबह शाम चार बार। दस से अठारह दिन तक छह बार। अठारह से पच्चीस दिन तक आठ बार। और बाद में शक्ति अनुसार आठ से बारह बार यह आसन करना चाहिए।

इस आसन से फायदा

फेफड़ा मजबूत और चौड़ा होता है। कब्जियत मिटती है। गला, छाती तथा हाथ, पाँव मजबूत होते हैं। स्त्रियों का कमर का दुखना इस आसन से खास तौर से मिट जाता है। अपान वायु छूटता है नाभी खिसक गई हो तो यह आसन दो तीन बार करने से बैठ जाती है। भूख लगती है। हाथ पाँव के स्नायुओं में शक्ति आती है। कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत करने की तैयारी करती है छोटी और बड़ी आंतें रोगों से निर्मल होती हैं। खून शुद्ध बनता है। मन प्रफुल्लित रहता है। वृक्क तथा मूत्राशय के रोग नाबूद होते हैं। माँस पेशियाँ सशक्त बनती हैं। मूलाधार चक्र , स्वाधिष्ठानचक्र, मनीपूर चक्र, अनाहत चक्र तथा विशुद्ध चक्र शुद्ध होता है।

गर्भवती, मासिक धर्म, तथा प्रसूति होने के बाद चालीस दिन तक स्त्रियों के गुप्त रोग जैसे शिश्नेन्द्रिय के साथ सम्बन्ध रखने वाले, बुखार वाले को यह आसन शुरू करने के पहिले किसी शरीर रचना के अभ्यासी से शरीर की जाँच करा लें अथवा इन दशाओं में उक्त आसन से हानि की संभावना हो सकती है। आहार सात्विक और जल्दी पच जाए ऐसा लेना चाहिए। 10 वर्ष की उम्र वाले स्त्री पुरुष से 100 वर्ष की उम्र वाले स्त्री-पुरुष यह आसन कर सकते हैं और इसका यथेच्छ लाभ ले सकते हैं।


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