साधकों का पृष्ठ

August 1940

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(जो साधक हमारी बताई हुई विधियों से विभिन्न प्रकार के अभ्यास कर रहे हैं। वे अपने अनुभव संक्षेप में प्रकाशनार्थ भेजें जिनसे दूसरे साधक भी लाभ उठा सकें।)

(1)

“ मैं क्या हूँ” पुस्तक के अनुसार साधन कर रहा हूँ। इससे मुझे बड़ी मानसिक शाँति मिल रही है। लोभ और कंजूसी मुझ में हद से ज्यादा थे। अब अपने और धन के असली स्वरूप को इस पुस्तक की कृपा से समझने लगा हूँ। अब मैंने अति लालच करना और आवश्यक कामों में भी कंजूसी करने का विचार छोड़ दिया है। आज कल दरवाजे पर से भिखारी खाली हाथ नहीं लौटते।

-मंगलचन्द्र जैन, छपरा

(2)

इस पुस्तक (मैं क्या हूँ) को पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता है मानो आप मेरे सामने बैठे हुए शिक्षा दे रहे हैं। इस पुस्तक के सिद्धान्तों के अनुसार जब अपने जीवन पर दृष्टि डालता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि बिल्कुल ही उलटे रास्ते पर चलता आया हूँ। आप जैसे से परिचय हो जाने पर मुझे प्रतीत होने लगा है कि शेष जीवन नष्ट न होगा।

-एन.एम.बाघ, लरकाना

(3)

जिनके द्वारा मुझे हानि पहुँचती थी, मैं उनसे बदला लेने के लिए व्याकुल हो जाता था। दो मास पूर्व की बात है कि एक आदमी को मैंने हानि पहुँचानी थी जब तक मैंने वैसा कर न लिया पन्द्रह दिन तक पूरी नींद न आई। क्रोध और आवेश के कारण मेरा शरीर जलता रहता था। जब से आपकी पुस्तक, मैं क्या हूँ, के अनुसार अभ्यास शुरू किया है, बिल्कुल बदल गया हूँ। शत्रुओं से भी प्रेम करने को जी चाहता है।

-कनकबिहारी सक्सेना, फूलपुर

(4)

आपका बताया हुआ साधन ठीक 6॥ बजे आरंभ कर देता हूँ और 7 बजे तक जारी रखता हूँ। तन्दुरुस्ती बहुत सुधर गई है। मनोबल बढ़ रहा है। श्मशान में जाते हुए मुझे डर लगा करता था अब मैं निर्भय रात में चाहे जहाँ चला जाता हूँ। शक्ति आकर्षण क्रिया से मुझे बहुत लाभ हो रहा है।

-रघुराजदत्त भारद्वाज, सिलहट

(5)

शरीर बहुत ही निर्बल हो गया था। दूध के सिवा कुछ भी हजम नहीं होता था। पास में जो कुछ था इलाज में खर्च हो गया था। तपैदिक का मरीज समझ कर घर वाले भी निराश हो गये थे। अप्रैल में जब आपको लिखा था तब मेरा केवल इतना ही विचार था कि चलते समय इसे भी आजमायें। मालूम होता है कि अभी मेरी सांसें बाकी हैं। इसलिए फिर से नई जिन्दगी पा रहा हूँ। बुखार अब नहीं रहा। भूख कड़ाई की लगती है लेकिन कभी-कभी दस्त लग जाते हैं। कृपा कर इसके लिए कुछ प्रबन्ध कर दीजिए।

-शकरसिंह राठौर

(6)

अब झगड़े कम हो गये हैं। सात मुकदमों में से केवल एक बाकी रह गया है। उसमें भी महीने पन्द्रह दिन में राजीनामा हो जायेगा। मेरी बुद्धि अब बिलकुल बदल गई है। पहले मैं अपने को निर्दोष और दूसरों को दोषी समझता था अब बिलकुल उलटा हो गया हूँ। जिन लोगों से झगड़ते-झगड़ते मेरी आधी उम्र बीत गई, उनके सामने जाकर जब मैं नम्रतापूर्वक नमस्कार करता हूँ तो वे अचम्भा करते है कि मुझको हो क्या गया है? इसका श्रेय आप...............।

-चिम्मनलाल गुप्ता, वीरपुर

मृत्यु के बाद....

आपकी बताई हुई विधि से बीमारियों का इलाज करना शुरु कर दिया। जेठ आसाढ़ के महीनों में ७० मरीज आये, जिनमें से ५५ बिलकुल अच्छे हो गये। अब मेरी तारीफ फैलती जा रही है। दूर- दूर के लोग आते हैं। आप विश्वास रखें मुफ्त ही इलाज करता रहूँगा किसी से कभी एक पैसा भी नहीं मागूँगा।

- हीरालाल खत्री, नाडेल

मैं क्या हूँ पुस्तक के अनुसार अभ्यास करने की आपने आज्ञा दी थी। तद्नुसार कर रहा हूँ। उससे मुझे आत्म संतोष और आनन्द प्राप्त होता है। यह अभ्यास अभी कितने दिन जारी रखना पड़ेगा?

- प्रभुदास सन्यासी, बलिया

मुझे थोड़ा सा ही लाभ हुआ है। कष्ट में अभी विशेष कमी नहीं है। दो महीने हो गये, अब कितना इन्तजार करूँ? अगले सप्ताह तक कोई संतोष कारक नतीजा न हुआ तो आपका साधन बन्द कर दूंगा।

-गोपीनन्द ओझा, गुजरान वाला

किसी को नीच पतित या पापी मत समझो। याद रखो, जिसे तुम नीच पतित और पापी समझते हो उसमें भी तुम्हारे वही भगवान विराजित हैं, जो महात्मा और ऋषियों के हृदय में हैं।


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