मैस्मरेज्म का प्रयोग

August 1940

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(प्रो. धीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती बी.एस.सी.)

पिछले अंकों में यह बताया जा चुका है कि मैस्मरेजम का अभ्यास करने के लिए अपनी आत्मा शक्ति को किस प्रकार बढ़ाना चाहिए। अब आगे चलिए। मैस्मरेजम द्वारा बढ़ी हुई आत्म शक्ति का खुद अपने ऊपर प्रयोग करके अपना लाभ किया जा सकता है। किन्तु यह प्रकरण कुछ कठिन और बढ़ी हुई दशा में उपयोग होने योग्य है। आरंभिक अभ्यासी को दूसरों के ऊपर प्रयोग करना चाहिए। सब से पहला उपयोग दूसरों को निद्रित करने का है। आइये, इसी अभ्यास को आज सिखावें।

मैस्मरेजम का प्रयोग करने के लिए के एक प्रयुक्त पात्र चुनना चाहिए। पात्र में तीन योग्यताओं का होना आवश्यक है। (1)निद्रित होने की इच्छा करता हो। (2)आप पर पूर्ण विश्वास करता हो। (3)आत्म समर्पण कर दे। बहुत से लोगों का खयाल है कि अपने से हीन शक्ति वाले मनुष्य पर ही प्रयोग हो सकता है यह बात गलत है इसमें बल, विद्या और उम्र को कोई सवाल नहीं है। जरूरत इस बात की है कि जिस पर प्रयोग किया जाय वह उसके विरुद्ध हो। कई लोग डरते हैं कि मैं निद्रित कर दिया गया तो न जाने मेरा क्या हो जायेगा। कुछ सोचते हैं कि मेरे छिपे हुए गुप्त भेदों को किसी ने जान लिया तो न जाने क्या होगा। इस प्रकार के भयों से रहित पात्र होना चाहिये। वह आप पर पूर्ण विश्वास करे कि यह मेरे हित का कार्य ही करेंगे कोई नुकसान न पहुँचावेंगे। वह आपको आत्म समर्पण कर दे तथा आज्ञा पाते ही मन और शरीर को उसी के अनुसार कार्य में लगा दे। छोटे बालक और स्त्रियाँ इस कार्य के लिए बहुत उपयुक्त हैं। मध्यम श्रेणी के आस्तिक स्वभाव वाले वयस्क भी पात्र हो सकते हैं। किन्तु 85 वर्ष से अधिक आयु वाले ठीक नहीं, उनके ज्ञान तंतु कठोर हो जाते हैं और वे आसानी से प्रभावित नहीं होते।

जिस पात्र को प्रयोग के लिए चुना जाय। उसे पहले अकेले में बुला कर समझा देना चाहिए कि निद्रित करने पर न कोई कमजोरी समझी जाती है और न कुछ कष्ट होता है। यह तो केवल एक मनो वैज्ञानिक क्रिया है। जिसके द्वारा तुम्हारा मानसिक विकास हो सकता है। और मस्तिष्क की कमजोरियाँ दूर करके उसे सबल बनाया जा सकता है। जैसा कि विदेशों में अनेक डॉक्टर इसी प्रणाली से रोगियों की चिकित्सा करते हैं।

ऐसे कई व्यक्तियों में से आपको एक व्यक्ति चुनना चाहिये। चुनने के लिए इस बात की परीक्षा करनी चाहिए कि इन सब में कौन अधिक उपयोगी है। पात्रों को आराम कुर्सी पर बिठाओ और उससे कहो कि दुर्बल स्वभाव के आदमी योग निद्रा प्राप्त नहीं कर सकते। अच्छा, अब तुम लोग अपने शरीरों को बिल्कुल शिथिल कर दो। आज्ञा देकर थोड़ी देर ठहरे और देखें कि इनमें से कौन कौन शिथिलता ला सकने में सफल हुए हैं। छड़ी को यदि तुम हाथ में से छोड़ दोगे तो वह इधर उधर गिर पड़ेगी। इसी प्रकार जिसने अपने शरीर को पूर्ण तया शिथिल कर दिया है उसके सब अंग कड़े न रहेंगे और इधर उधर ढुलक जायेंगे।

निद्रा का यह विज्ञान है कि वह थकावट आने पर ही आती है। शिथिलीकरण का तात्पर्य माँस पेशियों को थका देने की दशा में ला देना है, जिसके उपरान्त निद्रा आसानी से लाई जा सकती है। पात्र का शरीर और मन शाँत हो जाने पर उसे सम्मोहित कर देना बहुत सुगम है।

देखना चाहिए कि इन सब पात्रों में कौन सबसे अधिक सफल हुआ है। उसे ही अपने प्रयोग के लिए चुन लेना चाहिये। अब तक नित्य के अभ्यास का समय निश्चित किया जाय। प्रतिदिन एक ही समय का प्रयोग करना ठीक है। स्थान ऐसा होना चाहिए जहाँ एकान्त हो और शाँति रहती हो। प्रातःकाल का, दिन छिपे से एक घंटे बाद का, समय अभ्यास के लिए उचित है।

पात्र के लिए और अपने बैठने के लिए कुर्सियां बिछानी चाहिए इनके बीच में दो फुट का फासला रहे। पात्र के लिए आराम कुर्सी मिल सके तो सब से अच्छा है अन्यथा ऊँची पीठ वाली तो अवश्य ही होनी चाहिए जिससे पात्र निद्रित होने की दशा में उसका सहारा ले सके। साधन स्थान में मंद प्रकाश होना चाहिए। दिन हो तो सब दरवाजे बन्द कर लिए जायं। रात हो तो मोमबत्ती या सरसों के तेल का क्षीण प्रकाश-दीप जला देना चाहिए। पात्र की कुर्सी कुछ नीची और प्रयोक्ता की कुछ ऊँची रखने का प्रयत्न करना चाहिए। प्रयोक्ता का चेहरा प्रकाश के सम्मुख रहे। अर्थात् दीप या खिड़की में होता हुआ प्रकाश उसके चेहरे पर पड़े जिसे पात्र अच्छी तरह देख सके।

पात्र को सामने कुर्सी पर बिठा कर उससे कहना चाहिए कि अपने शरीर और मन को बिल्कुल शान्त कर दो और मेरी आँखों की तरफ एकाग्रता पूर्वक देखो। जब तुम्हारी आँखें थक जावें और निद्रा आने लगे तो तुरंत ही आँखें बन्द करके सो जाना।

अब आप स्थिर होकर बैठें। मेरु दंड बिल्कुल सीधा रहे। चेहरे पर निश्चय ही गंभीर भावना हो। पात्र के बाँए आँख की पुतली पर अपनी दृष्टि जमाइये और दृढ़ इच्छा कीजिए में अपनी आत्म विद्युत को इसके शरीर में प्रवेश कर रहा हूँ। तुम्हारी दृष्टि विचलित न हो। सारी इच्छाएं केन्द्रित होकर इसी एक प्रयत्न में लग जावें। पलक मारना मना है किन्तु जहाँ तक हो सके कम झपकाने चाहिए। आँखों के साथ ही चेहरे की अन्य चेष्टाएं भी ऐसी होनी चाहिए जिससे पात्र पर यही असर पड़े कि मेरे ऊपर प्रयोक्ता की बहुत अधिक शक्ति प्रभाव डालने के लिए प्रेरित हो रही है।

इस प्रकार के प्रयोग से कुछ ही देर में पात्र की आँखें झपकने लगती हैं और वह साधारणतः पाँच से लेकर पन्द्रह मिनट के अन्दर निद्रित हो जाता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118