व्यक्तित्व को चार चाँद लगाने वाली दो विभूतियाँ

June 1991

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दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कोई विशेषता होनी आवश्यक है। कलाकार, गायक, विद्वान, शिल्पी, पहलवान, डॉक्टर, धनवान आदि लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं और एक सीमा तक सामयिक प्रशंसा भी प्राप्त कर लेते हैं। दर्शकों को अजूबे जैसा कौतूहल ही हाथ लगता है। ऐसे कौतूहल प्रदर्शित करने में तो मदारी, बाजीगर भी सफल हो जाते हैं। वे दर्शकों की जेबें खाली करा लेते हैं। सरकस का तमाशा देखने लोग दौड़-दौड़ जाते हैं और अपने परिवार को भी साथ ले जाते हैं। टिकट खरीदने में पैसा खर्चते हैं सो अलग, ऐसा कौतूहल अपने व्यक्तित्त्व की विचित्रता से प्रदर्शित किया जा सकता है। यह कला का चमत्कार है। कला भी एक चतुरता है। उसके लिए भी खर्चना पड़ता है, पर अंततः है वह सरल। क्योंकि उसके सीखने-सिखाने के माध्यम अपने इर्द-गिर्द ही मिल जाते हैं।

लोगों को अधिक गहराई तक प्रभावित और आकर्षित करने के दो तरीके प्रमुख हैं। जो नितान्त सस्ते भी हैं और उनके लिए कोई विशेष परिश्रम भी नहीं करना पड़ता। पैसा खर्चने जैसी भी कोई बात नहीं है। मात्र मन में उनकी उपयोगिता, महत्व समझे जाने की आवश्यकता भर है। साथ ही उन विभूतियों को स्वभाव का अंग बनाने के लिए ध्यान देने की भी।

ये दो तरीके हैं मधुर वचन एवं मृदुल मुस्कान। इन दोनों को अपनाते ही चेहरा कमल पुष्प जैसा खिल उठता है, जिसकी शोभा भी असाधारण होती है और सुगन्ध भी। सुन्दरता के लिए सभी इच्छुक और आतुर होते हैं। इसके लिए खर्चीले शृंगार साधन भी जुटाते हैं पर यह भूल जाते हैं कि यह बनावट कागज के फूलों जैसी है जो अपनी अवास्तविकता प्रकट किये बिना नहीं रहती कितनी ही कुशलता उनमें लगी है पर कागज के फूल किसी को बहुत देर धोखा नहीं दे सकते। आच्छादनों के आधार पर साज-सज्जा के सहारे बनायी गयी सुन्दरता अपने नकलीपन को प्रकट किये बिना नहीं रहती। असली फूल की शोभा और सुगन्ध स्वाभाविक होती है इसलिए वह अपने समय तक यथावत् बनी रहती है। चेहरे की मुसकान के सम्बन्ध में भी यही बात है। वह मनःस्थिति को संतुष्ट, संतुलित, प्रसन्न रखने की प्रतिक्रिया मात्र है। उसे दर्पण के सहारे प्रयत्नपूर्वक भी अभ्यास में उतारा जा सकता है।

चेहरे की बनावट की दृष्टि से कोई कुरूप ही क्यों न हो, पर जब होठों पर मुसकान खिलती है तो दीखते हुए दाँत मोतियों जैसे फबते हैं। कमल की पंखुड़ियाँ जिस तरह फैलने पर अपने असाधारण सौंदर्य का प्रदर्शन करती है, वैसी ही बात मुसकराते हुए चेहरे की भी है। उदास, निराश, असंतुष्ट, असंतुलित व्यक्ति अपने को थका हारा, उपेक्षित, अभागा समझते हैं और मुँह लटकाये गंभीर बने बैठे रहते हैं। किसी से बात करते हैं तो कोई बेगार भुगतनी पड़ रही हो, ऐसा अनुभव करते हैं। जिनकी दूसरों में दिलचस्पी नहीं है, जो अपने को एकाकी अनुभव करते हैं, उन्हीं के चेहरे पर उदासी छायी रहती है। ऐसे लोगों के साथ संपर्क बनाने की हर किसी की अनिच्छा रहती है। उनके साथ रहने या उन्हें साथ रखने में हर किसी पर भार पड़ता है।

जब फूल खिलता है तो उसका आकर्षण भरा सौंदर्य अनायास ही निखर पड़ता है। उसके साथ घनिष्ठता बनाने के लिए तितलियों मधुमक्खियों के झुण्ड एकत्रित हो जाते हैं। भ्रमर मंडराने लगते हैं। आम पर बोर आते ही कोकिल कूकते हुए उसका यशगान करती है। बसन्तऋतु में खिलता हुआ माहौल पशु-पक्षियों कीट-पतंगों तक को अपनी ओर आकर्षित करता है। उन्हें उत्साह प्रदान करता है। ठीक इसी प्रकार मुसकराते हुए चेहरे की भी स्थिति है। उसकी उपमा बसन्त के आगमन से दी जा सकती है। खिले हुए कमल पुष्प से भी। इस सुन्दर अभिव्यक्ति को देखने के लिए हर किसी का मन चलता है।

मुस्कराने वाला सदा प्रशंसकों से घिरा रहता है। इस दर्शनीय प्रतिमा की निकटता हर किसी को सुहाती है। मन मोहती है। ऐसा सुयोग प्राप्त करने का मूलभूत आधार तो यही है कि हलका-फुलका, हँसता-हँसाता जीवन जिया जाय। हर स्थिति में प्रसन्न रहने की आदत डाली जाय। प्रतिकूलताओं की उपेक्षा की जाय। पर यदि दृष्टिकोण उतना परिष्कृत न हो सके तो उस अभ्यास को कलात्मक रूप से भी स्वभाव में उतारा जा सकता है। जब भी अवसर मिले, मुसकाने का उपक्रम करते रहा जाय। दर्पण सामने हो तो वह बताएगा कि इस स्वभाव परिवर्तन से चेहरा कितना सुन्दर, कितना आकर्षक बन पड़ा। कुछ दिन के अभ्यास से वैसा स्वभाव ही बन जाता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपनी विशेषता बनाये रहता है। जिस पर यह माधुर्य है, वह कभी एकाकी नहीं रहेगा। उसकी विभूति का रसास्वादन करने के लिए अनेकों इर्द-गिर्द मँडराते रहेंगे।

दूसरी विभूति है मधुर वचन। इसके लिए किसी की खुशामद, चापलूसी करने की जरूरत नहीं है और न ऐसा कुछ करने की आवश्यकता है कि जो किसी ने चाहा है, उसे देने का झूठा आश्वासन दिया जाय। उथले लोग यही चाहते हैं कि उनकी मनमर्जी की सहमति प्रकट की जाय। इसमें उनकी स्वार्थ सिद्धि ही प्रमुख होती है। इस प्रकार के वचनों में अपना मतलब साधते देखकर लोग प्रसन्न होते देखे गये हैं। पर यह सब किसी यथार्थवादी, आदर्शवादी के लिए संभव नहीं। झूठे वायदे करना, झूठी खुशामद करना, हाँ में हाँ मिलाना दरबारियों या ठगों से ही बन पड़ता है, जो किसी को जाल में फँसाने के फिराक में रहते हैं।

मधुर वचन साधारण बोलचाल में ही समाविष्ट हो सकते हैं। अपनी नम्रता और दूसरे का सम्मान यदि वार्ता प्रसंग में मिला हुआ हो तो इतने भर से वाणी में मिठास आ जाता है। बेकार की बातें न करके यदि किसी की सराहनीय कृतियों या प्रवृत्तियों की चर्चा कर दी जाय तो उस प्रकार कथन अनायास ही मधुर बन जाता है। इससे उसे अपनी विशिष्टताओं को बढ़ने के लिए प्रोत्साहन भी मिलता है। वह प्रयत्न करता है कि इसी प्रकार की विशिष्टतायें उसमें और भी अधिक बढ़ें ताकि अनेक लोगों द्वारा प्रशंसापरक वचन सुनने को मिलते रहें।

स्मरण रहे दूसरों की वास्तविक गुणवत्ता को तो विस्तारपूर्वक और अभिनंदन की मुद्रा में कहा जा सकता है। पर अपनी शेखी बघारने से हर किसी को बाज आना चाहिए। उथले मनुष्य अपनी शिक्षा, सम्पदा, चतुरता का वर्णन सुनाने में रुचि लेते हैं। अपनी सफलताओं और योजनाओं को बढ़-चढ़ कर बताते हैं। यह ओछेपन का चिन्ह है। इसे अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना कहा जाता है। आवश्यकता पड़ने या पूछे जाने पर अपने प्रयासों की प्रासंगिक चर्चा की जा सकती है पर उसमें अनेक मित्रों के सहयोग का कृतज्ञतापूर्वक समावेश करना नहीं भूलना चाहिए। यदि अपने अहंकार और दूसरों के असम्मान की गंध वाणी में न आने पाये तो वह सहज ही मधुर बनेगी और हर सुनने वाले को प्रिय लगेगी। मधुर वचन और सहज मुसकान की गुणवत्ता को जीवन व्यवहार में जितना अधिक समझा जाये उतना ही उत्तम है।


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