अविज्ञात के गर्भ में गूँजती ये रहस्यमय ध्वनियाँ

June 1991

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वैसे तो इस सृष्टि की उत्पत्ति ही शब्द-ब्रह्म नाद-ब्रह्म से हुई बताई जाती है और कहा जाता है कि तभी से ये सूक्ष्म नाद इस विश्व-ब्रह्माण्ड में गुँजायमान है। साधना विज्ञान के पथिक साधना के उच्च सोपानों में चढ़ कर इस नाद को पकड़ते, सुनते एवं विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ अर्जित करते हैं, पर कई बार इस प्रकार की भौतिक ध्वनियाँ न जाने कहाँ से उत्पन्न होतीं, लोगों को सुनाई पड़ती और थोड़ी देर पश्चात् स्वतः विलीन हो जाती हैं, जब कि सब कुछ आश्चर्यजनक घटती ही रहती हैं।

बताया जाता है कि मध्य एशिया के आठ लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैले हुए गोबी मरुस्थल के तकलामारान प्रदेश के अन्दास पारसा नामक स्थान पर यदा-यदा ऐसी ही मधुर ध्वनि निनादित होती हुई स्थानीय लोगों द्वारा सुनी जाती है। इसकी अवधि 15-20 मिनट तक रहती है, तत्पश्चात् स्वतः बन्द हो जाती है। एक अमेरिकी रेडियो कम्पनी ने टेप करके इस संगीत को रेडियो से प्रसारित किया, तो कितने ही श्रोताओं की आँखों से अनायास आँसू बहने लगे। कहा जाता है कि यह धुन इतनी कारुणिक है कि अन्तस्तल को छू जाती है। इस संगीत के रहस्य का पता लगाने का प्रयास तब से अब तक अनेकों बार किया जा चुका है, पर हर बार विफलता ही हाथ लगी है। एक बार इस पूरे क्षेत्र का कई दिनों तक आडियो रिकार्डिंग व वीडियो कैमरा लगा कर फिल्माँकन भी किया गया, किन्तु फिर भी रहस्य पर से पर्दा न हट सका।

“वण्डर बुक ऑफ दि स्ट्रेंज फैर्क्टस” नामक पुस्तक में नील नदी के तट पर स्थित कारनक के खण्डहरों में दो विशालकाय प्रतिमाओं की चर्चा की गई है। इनकी परस्पर की दूरी लगभग 1 किलोमीटर है। इन दोनों से एक विग्रह तो पत्थर की सामान्य प्रतिमा जान पड़ती है, पर दूसरी के निकट जाने से बोलने की कुछ अस्फुट ध्वनियाँ सुनाई पड़ती हैं। ऐसा लगता है मानो आगन्तुक से वह उसका कुशल क्षेम पूछ रही हों। जब से यह घटना प्रकाश में आयी है, तब से विश्व के कई शोध दलों ने वहाँ पहुँच कर इसका कारण जानने का प्रयास किया है, पर अब तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। मूर्ति के भीतर छुपाये गए किसी संभावित रेडियो सेट का भी पता लगाने का प्रयास किया गया, किन्तु ऐसा कोई सूत्र-संकेत हाथ नहीं आया, जिससे ऐसा अनुमान लगाया जा सके।

इस प्रकार की एक घटना चैकोस्लोवाकिया के उस नदी तट पर घटित हुई, जो देश के मध्यवर्ती भाग से होकर बहती है। हुआ यों कि सन् 1980 की एक शाम कुछ लोग नदी-तीर पर सैर कर रहे थे। अभी धुन आती सुनाई पड़ी। पहले तो पर्यटकों ने सोचा कि कोई उन जैसा पर्यटक ही अपनी बाँसुरी बजा रहा है, मगर आस-पास जब उन्हें कोई अन्य दिखाई नहीं पड़ा, तो वे आश्चर्य में पड़ गये। खोजबीन के लिए वे ध्वनि-श्रोत की ओर आगे बढ़ते, त्यों-त्यों वह खिसकता चला गया। इस क्रम में अन्ततः वे नदी तट पर जल में पहुँच गये। अब संगीत नदी के जल के अन्दर से आता सुनाई पड़ने लगा। कुछ ही दिन पूर्व वहाँ कुछ सिपाही मारे गये थे। वे इसे उन्हीं मृतात्माओं की कारिस्तानी समझ कर डर कर भाग गये। पर अब तक भी आधिकारिक रूप से ये नहीं कहा जा सका कि यह किन्हीं भूतों का कौतुक है।

कवाई टापू हवाई द्वीप समूह के अंतर्गत आता है। होनोलूलू से लगभग 12 कि. मी. दूर पर स्थित इस टापू पर एक 20 मीटर ऊँची पहाड़ी है, जो रात के समय अजीबोगरीब ध्वनियाँ पैदा करती है। उस सुनसान पहाड़ी के आस-पास मीलों दूर तक कोई गाँव नहीं है। वहाँ जब रात का अन्धेरा घिरता है, तो कुत्तों के भौंकने की आवाजें न मालूम कहाँ से आने लगती हैं। दिन के उजाले में उस पहाड़ी पर चढ़ कर कई खोजी दलों ने घूम-घूम कर कुत्तों को ढूँढ़ने का प्रयास किया, पर प्रयत्न निष्फल गया। वहाँ कुत्ते तो क्या कोई अन्य जानवर भी दिखाई नहीं पड़े।

अफगानिस्तान में काबुल के निकट एक रेगिस्तानी मैदान है। उस मैदान से दिन के समय जब सूर्य अपनी प्रचण्ड किरणें बिखेर रहा होता है, ऐसी आवाजें आती हैं, मानों कई घुड़सवार एक साथ शनैः- शनैः निकट आते जा रहे हों, जबकि वास्तविकता यह है कि उस रेतीले मैदान में घुड़सवार कभी जाते ही नहीं। ऊँटों की सवारी भी उस क्षेत्र में नहीं की जाती, क्योंकि उसके आगे दूर-दूर तक का क्षेत्र जनहीन है। ऐसे में ऐसी ध्वनियों का होना निश्चय ही आश्चर्यजनक है।

न्यूयार्क में एक बार लोग रेडियो प्रसारण सुन रहे थे। कोई बड़ी अच्छी धुन आ रही थी। सभी उसमें खोये हुये थे, तभी अचानक संगीत बन्द हो गया और नारी स्वर में ऐसी अबूझ आवाजें आने लगीं जिसे कोई समझ नहीं सका। बाद में जब रेडियो स्टेशन से पत्र-व्यवहार कर उक्त घटना की जानकारी चाही गई, तो अधिकारियों ने ऐसे किसी विचित्र स्वर के बारे में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की। उन्होंने कहा कि उस दिन ऐसा कोई रिकार्ड नहीं बजाया गया था एवं संगीत कार्यक्रम के दौरान केवल धुनें ही बजायी गई थीं।

इजरायल के सिनाई अंचल में स्थित पहाड़ी से रह-रह कर घंटियों की आवाज आती है। इसी कारण उसका नाम “बैल माउण्ट” रख दिया गया है। घाटियों के बजने का कारण अब तक अविज्ञात है और न यह ज्ञात हो सका कि यह आवाजें पर्वत से कैसे, क्यों और कहाँ से उत्पन्न होती हैं?

ईराक में जहाँ दजला नदी पहाड़ी भाग से गुजरती है, वहाँ से करीब दो किलो मीटर दूर एक पहाड़ी गुफा की विशेषता यह है कि इसमें सदा एक प्रकार की सुमधुर ध्वनि निनादित होती रहती है, जिसे सुनने के लिए लोग समय-समय पर इकट्ठा होते रहते हैं। कन्दराएं तो इस क्षेत्र में कई हैं, पर संगीत लहरियाँ सिर्फ एक ही से निकलती हैं। इसकी इसी विशेषता के कारण लोग इसे ‘म्यूजिकल केव’ के नाम से पुकारते हैं।

प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक और पर्यटक पाल ब्रण्टन ने अपनी पुस्तक “इन सर्च ऑफ एनशियेण्ट इजिप्ट” में एक स्थान पर लिखा है कि नील नदी से 20 मील उत्तर में एक अत्यन्त प्राचीन खण्डहर है। यह कोई एक चौथाई कि. मी. क्षेत्र में फैला हुआ है। रात को वहाँ कोई जाता है तो बच्चों के खिलखिलाने की आवाजें सुनाई पड़ती हैं। ज्ञातव्य है कि वह स्थान पाँच मील की परिधि में जनहीन है, अतः रात के समय वहाँ किसी के आ पहुँचने की संभावना नगण्य जितनी दीखती है और यदि इसे सही मान भी लिया जाय, तो प्रतिदिन रात के समय यह घटना वहाँ कैसे घट सकती है? मजे की बात यह है कि दिन में वहाँ सब कुछ सामान्य रहता है।

यह रहस्यमय ध्वनियाँ क्यों व कैसे उत्पन्न होती हैं, एवं इनका श्रोत क्या है? यह अब तक अविज्ञात है और पदार्थ विज्ञान के लिए इनका उद्घाटन चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। संभव है मनुष्य जब अध्यात्म विज्ञान का अवलम्बन लेकर सामान्य से ऊपर के आयामों में पहुँचेगा, तो वह न सिर्फ इन भौतिक ध्वनियों के रहस्य को अनावृत्त कर सकेगा, वरन् उन अभौतिक एवं सूक्ष्म दिव्य ध्वनियों को भी सुनने समझने और लाभ उठाने में सफल-समर्थ बन सकेगा, जो अनादिकाल से इस विश्व-ब्रह्माण्ड में तरंगायमान हैं, और सुपात्रों को समर्थ सहयोग प्रदान करने के लिए आकुल-व्याकुल भी।


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