शाँग्रीला जिसे एक दृष्ट ने देखा

June 1991

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लंदन के लंकाशायर में जन्में (1900-1954) जेम्स हिल्टन की छवि वैसे तो एक यूटोपियाकार की रही है और ख्याति भी उनकी इसी रूप में फैली, पर यदा-कदा वह ट्राँर्स में जाकर भविष्यवाणी भी किया करते थे, जो कई अवसरों पर अक्षरशः सत्य सिद्ध होती हुई देखी गयी।

एक यूटोपिया उन्होंने ‘शाँग्रीला’ नाम से लिखा है। वैसे इसे यूटोपिया कम और भविष्यवाणी कहना अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि इसकी शुरुआत ही उन्होंने कुछ इस रूप में की है, जैसे कोई द्रष्ट महापुरुष सुदूर भविष्य को अपनी आँखों के सामने प्रत्यक्ष दृश्यमान होता हुआ देख रहा हो। जब उनकी आयु मात्र 17 वर्ष की थी, तभी उन्होंने इस यूटोपिया को लिपिबद्ध करते हुए लिखा था-”आप चिन्ता न करें, भाव संवेदना एवं एकता-समता के प्रबल पक्षधर लोगों का समय जल्द ही आ रहा है, जिसमें भावनात्मक दृष्टि से लोग एक दूसरे के इतने निकट सम्बद्ध होंगे कि “वन फॉर ऑल एण्ड ऑल फॉर वन” का सूत्र-सिद्धान्त स्पष्ट रूप से क्रियान्वित होता हुआ देखा जा सकेगा।” वे आगे लिखते हैं कि उत्तरी भारत के एक स्थान पर मैं नवयुग का बीजारोपण होते हुए स्पष्ट देख रहा हूँ, जो देखते-देखते इक्कीसवीं सदी में विशाल वट-वृक्ष का रूप धारण कर अपनी समस्त शाखा-प्रशाखाओं समेत सम्पूर्ण संसार को अपनी अंकशायिनी बना रहा है।

“शाँग्रीला-दि अल्ट्रा न्यू मॉडल दि कमिंग वर्ल्ड-ऑर्डर” नामक अपनी पुस्तक में इस यूटोपिया बनाम भविष्य कथन का सविस्तार वर्णन है। उसमें उन्होंने अलंकारिक भाषा का प्रयोग करते हुए लिखा है कि “सूर्य को अपना आराध्य और इष्टदेव मानने वाला देश, जहाँ विश्व की सबसे ऊँची चोटी है, वहाँ मैं देख रहा हूँ कि एक ऐसे नगर का निर्माण हो रहा है, जहाँ हजारों देव तुल्य व्यक्ति रहते हैं, उस पठार में एक पवित्र नदी बहती है, जिसका प्रथम अक्षर अँग्रेजी का “जी” यहाँ उनका आशय गंगा नदी से हो सकता है। यही है आज से 73 वर्ष पूर्व देखा हुआ उनका “शाँग्रीला” अर्थात् शान्ति और सद्भाव, सेवा और सहकार से ओत-प्रोत देव नगरी।

वे इसी पुस्तक में आगे लिखते हैं कि मैं स्फुट देख रहा हूँ कि इस नगरी में लोग दूर-दूर से आध्यात्मिक शक्ति अर्जन और शान्ति के प्रवर्तन के लिए चले आ रहे हैं। यहाँ से समस्त विश्व में एक ऐसा शक्ति-प्रवाह बिखेरा जा रहा है, जिससे लोग युद्धोन्माद भड़काने वाली रीति-नीति को त्याग कर सहयोग व सहकार का, शान्तिप्रियता का शाश्वत सिद्धान्त अपना रहे हैं, किन्तु इस शान्ति का अजस्र प्रवाह जन-जन के मन-मन में चिरस्थायी रूप से प्रतिष्ठित करने के लिए उनका केवल स्थूल प्रयास ही काफी नहीं है। यदि मेरी दृष्टि देख रही है, तो मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसमें भगवद् सत्ता का मार्गदर्शन और कई अशरीरधारी योगियों का सूक्ष्म संरक्षण लोगों की इन गतिविधियों में उनका साथ दे रहा है, भले ही उन्हें इसकी अनुभूति व प्रतीति न हो रही हो, पर मेरे दिव्य नेत्र, उनके अथक प्रयास को स्थूल अभिव्यंजना देने में प्राणपण से लगे, जी तोड़ कोशिश करते देख रहे हैं। हिल्टन कहते हैं कि शाँग्रीलावासी लोगों के स्थूल प्रयत्नों और सूक्ष्म शरीरधारी सत्ताओं के अशरीरी प्रयासों से परिवर्तन-प्रवाह इतना तीव्र व तूफानी हो उठता है, जैसे भोर का मन्द और मन्थर अरुणोदय कुछ ही घण्टे पश्चात् अपनी प्रखर किरणों से समस्त विश्व को जीवनदायी आभा और ऊर्जा से भर देता है।

इसे कल्पना पर आधारित यूटोपिया कहा जाय अथवा अपने सामने घटित होती हुई एक सच्चाई-यह निर्णय करना तो पाठकों का काम है, पर यूटोपिया और यूटोपियाकारों के बारे में जो एक बात कही जा सकती है वह यह कि वे सर्वथा असत्य भी नहीं होते, क्योंकि यूटोपिया की कल्पना भी वर्तमान समय और परिस्थितियों को ध्यान में रख कर ही की जाती है, अतः प्रस्तुत यूटोपिया यदि सत्य सिद्ध होता है तो उसे एक ऐसी सच्चाई कही जानी चाहिए जिसे वर्षों पूर्व एक द्रष्ट मनीषी ने देखा था।


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