तप से प्रजापति ने इस सृष्टि को सृजा। सूर्य तपा और संसार को तपाने में समर्थ हुआ। तप के बल से शेष पृथ्वी का वजन उठाते हैं। शक्ति और वैभव का उदय तप से ही होता है।
तपाने पर धातुओं से उपकरण ढलते हैं। सोने के आभूषण बनते हैं। बहुमूल्य रस भस्में तपाये जाने पर ही अमृतोपम गुण दिखाती हैं।
तपस्वी बलवान बनता है, विद्वान और मेधावी बनता है। ओजस्, तेजस् और वर्चस् प्राप्त करने के लिए तपश्चर्या का अवलम्बन लेना पड़ता है।
विलासी, आलसी और कायर मरते हैं, प्रतिभा गँवा बैठते हैं, प्रामाणिकता न रहने पर उन्हें लक्ष्मी छोड़कर चली जाती है। वे पराधीन की भाँति जीते और दीन दुर्बल की तरह उपहासास्पद बनते हैं।
अस्तु, तपस्वी होना चाहिए। तप में प्रमाद नहीं करना चाहिए। तपस्वी को रोको मत। तपस्वी को डराओ मत।