जून के इस अखण्ड-ज्योति अंक में गुरुदेव ने अपनी गायत्री उपासना, जीवन साधना एवं समष्टि आराधना सम्बन्धी संदर्भ अपनी लेखनी से लिखे हैं। उनका जीवन क्रम बहुमुखी रहा है, तो भी उसमें से जितना भी सम्भव था, सर्वसाधारण हेतु हृदयंगम करने योग्य गायत्री-महाप्रज्ञा विषयक प्रेरणा प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया।
यह अंक एक संग्रहणीय ग्रन्थ है। पत्रिका के हिसाब से इसका मूल्य एक रुपये पैंसठ पैसे के लगभग बैठता है। अखबारी कागज सस्ता होने व संस्थान की सर्वसाधारण तक अध्यात्म की जानकारी पहुँचाने की नीति के कारण इतने कम मूल्य में मिल सकना सम्भव भी हो सका है। विज्ञ परिजनों ने इस अंक की महत्ता समझते हुए इसकी अधिकाधिक प्रतियाँ बेचने का निश्चय भी किया है, ताकि वे खरीदें, दूसरों को पढ़ाते रहें। इस अंक में सारी सामग्री दे सकना सम्भव नहीं था। इसलिये शेष सामग्री सूक्ष्मीकरण का स्वरूप, उसके फलितार्थ एवं जनसाधारण को इससे मिलने वाले लाभों का वर्णन जुलाई व उसके आगे के अंकों में छापा जाता रहेगा। जुलाई अंक भी एक समग्र विशेषाँक होगा। प्रस्तुत जून अंक यदि पुस्तकाकार छापे तो इसकी कीमत अपने नीति-मर्यादा के बावजूद पाँच रुपये से कम किसी प्रकार न होगी। यही कारण है कि यही अंक नहीं आगे के अंकों में गुरुदेव के चिन्तन प्रवाह से स्वयं को जोड़ने के लिए अधिकाधिक ग्राहक बनाने- इस अंक के माध्यम से नयों को परिचित कराने की एक प्रतिस्पर्धा सी चल पड़ी है। कइयों ने पाँच-पाँच सौ अंक मंगाये हैं।
एक सुविधा और भी संस्थान द्वारा दी जा रही है कि नए व्यक्ति संपर्क में आएं उन्हें इस अंक के विक्रय के उपरान्त 6 माह के लिए 10 रुपये राशि अग्रिम भेजकर ग्राहक बनाया जा सकता है। पहले एक जनवरी से ही ग्राहक बनाये या नियमित किये जाते थे। चूंकि गुरुदेव का लेखन-प्रवाह सन् 2000 तक अनवरत चलता रहेगा। एवं नवयुग की पृष्ठभूमि बनाने वाला विचार प्रवाह परिजनों को सतत् मिलता रहेगा, अधिक से अधिक व्यक्तियों को संपर्क में लाने का प्रयास जारी रहेगा, ऐसी आशा प्रबल होने लगी है।