जून के विशेषाँक के विक्रय में अधिक उत्साह दिखायें

June 1984

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प्रस्तुत अंक गुरुदेव द्वारा स्वयं लिखित, उनका संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त मार्मिक सारगर्भित जीवन वृत्तांत है। उसमें औपन्यासिक घटना क्रम नहीं वरन् लम्बे जीवन की कर्मठतापूर्वक की गई इस साधना का निचोड़ है जिसकी एक-एक पंक्ति में अध्यात्म तत्वज्ञान के रहस्य कूट-कूट कर भरे हैं। समूचे अंक में यही एक सामग्री है। इसे आजीवन संग्रहणीय समझा जाना चाहिए। माननीय तथा जीवन में उभारने योग्य भी।

पिछले अंक में इसकी तीन प्रतियाँ अतिरिक्त मंगाकर अपने संपर्क क्षेत्र में सभी को पढ़ाने के लिए कहा गया था। प्रसन्नता की बात है कि अधिकांश पाठकों ने यह अनुरोध किया है।

मिशन के मूर्धन्यों का एक और भी आग्रह है कि इस अंक को बड़ी संख्या में बेचने के लिए प्रभावशाली लोग टोली बनाकर निकलें। जिनमें भी अध्यात्म के प्रति रुझान हो उन्हें बेचें। पसन्द न आने पर पैसा लौटा देने की शर्त रखें। इससे यह लाभ होगा कि जो खरीदेंगे वे भी और पाँच लोगों को पढ़ाने की शर्त पालन करने पर इस बहुमूल्य सामग्री को अधिक व्यापक बनाने में सहायक हो सकेंगे। जो पढ़कर लौटा देंगे वह स्वयं भर जान पायेंगे। अन्य किसी तक प्रकाश पहुँचाने में समर्थ नहीं हो सकेंगे। इसलिए इसे बेचे और खरीदे जाने का आन्दोलन इन दिनों चलना चाहिए।

इस बार की गुरुपूर्णिमा 12 जुलाई की है। जून अंक 8 जून (गायत्री जयन्ती) के लगभग पहुँच जायेगा। इस एक महीने की अवधि में जीवन वृत्तांत अंक को जितना अधिक बेचा जा सके उसमें हर पाठक उत्साह दिखाये। आवश्यकतानुसार अंक समय रहते मंगालें। पुस्तकाकार छपने पर इसकी लागत पाँच रुपये से कहीं अधिक ही होगी। समय रहते आर्डर मिल जाने पर उतने अतिरिक्त अंक छपने की व्यवस्था करने में सुविधा रहेगी। -व्यवस्थापक अखण्ड-ज्योति मथुरा


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