जीवन उद्देश्य प्राप्त करो

November 1961

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भवसागर को तैर कर पार करते हुए चिन्ता किस बात की! देखो पार तो वह कटि पर हाथ धरे खड़े हैं। जो कुछ चाहते हो उसके वही तो दाता हैं। उनके चरणों में जाकर लिपट जाओ। वह जगत स्वामी तुमसे कोई मोल न लेंगे। केवल तुम्हारी श्रद्धा भक्ति से ही तुम्हें अपने कंधे पर उठा ले जायेंगे। जहाँ भगवान शक्त हैं वहाँ भक्ति और मुक्ति की चिन्ता क्या, वहाँ दैन्य और दरिद्रता कहाँ! वही भवरोग की औषधि है। जन्म, जरा और सब व्याधि इससे दूर हो जाती हैं। परमात्मा की शरण में जाओ उन्हीं के बनो। उनके स्मरण में मग्न हो जाओ। इस देह से ही मुक्ति प्राप्त करो! उठो आँखें खोलो! यह नर तनु बड़ी भारी निधि हैं। ईश्वर लाभ कर इसे सार्थक करो।

जीवन का लक्ष हैं प्रभु की प्राप्ति। इसके लिए मनुष्य शरीर ही एक मात्र साधन हैं। इस साधन को प्राप्त करके सबसे बड़ी बुद्धिमत्ता की बात यही हो सकती हैं कि भगवान को प्राप्त कर हम अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सच्चे मन से संलग्न हों।

-सन्त तुकाराम


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