विचारणीय और माननीय

November 1961

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राजा बड़ा या संत

एक दिन एक राजा और महात्मा में भेंट हुई। दोनों अपने-अपने क्षेत्रों की प्रशंसा करने लगें। महात्मा ने आत्मा की महत्ता बताई, राजा ने अपने राज की। महात्मा ने कहा-राज आत्मा से बड़ा नहीं हो सकता। उनने राजा से पूछा-यदि तुम रेगिस्तान में घिर जाओ और प्यास से प्राण निकलें और उस समय कोई पानी के बदले आधा राज्य माँगें तो दोगे या नहीं ? राजा ने कहा-दूँगा फिर महात्मा ने पूछा-यदि तुम बीमार हो जाओ और रोग इतना बढ़े कि बचने की कोई आशा न रहे ऐसी दशा में यदि कोई वैध शर्त के साथ इलाज करे और अच्छा करने की कीमत आधा राज माँगे तो दोगे या नहीं ? राजा ने कहा-दूँगा

महात्मा जी खिलखिला कर हँस पड़े उनने कहा-जो राज एक लोटा पानी और एक शीशी दवा के बदले दिया जा सकता है उसका महत्व आत्मा से बढ़ कर किस प्रकार हो सकता है? जिस जीवन की रक्षा के लिए जब मनुष्य बड़े से बड़ा काम कर सकता है तो उस जीवन के उत्कर्ष के लिए तो उसे राज पीट से भी बड़ी चीज का त्याग करने को उद्धत होना चाहिए।

ईश्वर के प्रियपात्र

खलीफा उमर एक बार अपने धर्म स्थान पर बैठे हुए थे। उन्हें स्वर्ग में एक फरिश्ता उड़ता हुआ दिखाई दिया , उसके कन्धे पर बहुत मोटी पुस्तक लदी हुई थी। खलीफा ने उसे पुकारा वह नीचे उतरा तो उनने उस पुस्तक के बारे में पूछा कि इसमें क्या है? फरिश्ते ने कहा-इसमें उन लोगों के नाम लिखे है जो खुदा की इबादत करते है। इन्होंने अपना नाम तलाश कराया तो फरिश्ते ने सारी पुस्तक ढूँढ़ डाली पर उनका नाम कही न मिला। इस पर खलीफा बहुत दुखी हुए कि हमारा इतना परिश्रम बेकार ही चला गया।

कुछ दिन बाद एक और फरिश्ता छोटी सी किताब लिए उधर से गुजरा। खलीफा ने उसे भी बुलाया और उस पुस्तक में क्या है, यह पूछा उसने उत्तर दिया-इसमें उन लोगों के नाम है जिनकी कि इबादत, खुदाबन्द करीम खुद करते है। इस पुस्तक का पन्ना खोला गया तो उसमें खलीफा का नाम मोटे अक्षरों में लिखा हुआ था। फरिश्ते ने यह भी बताया कि जो लोग खुदा के आदेशों का पालन करते है, उन पर दुनिया को चलाने की कोशिश करते है उन्हें खुदा बहुत आदर की दृष्टि से देखते है अगर उनकी इबादत वे खुद करते है।

भगवान सब को देखता है।

एक बार एक भला आदमी बेकारी से दुखी था। उसकी यह दशा देखकर एक चोर को सहानुभूति उपजी। उसने कहा-मेरे साथ चला करो ‘चोरी में बहुत धन मिला करेगा। ‘वह बेकार आदमी तैयार हो गया। पर उसे चोरी आती न थी। उसने साथी से कहा मुझे चोरी आती तो है नहीं करूँगा कैसे? चोर ने कहा इसकी चिन्ता न करो मैं सब सिखा लूँगा। पहले हलका काम कराऊँगा फिर कठिनाई के मौके पर चलना। वह तैयार हो गया।

चोर एक किसान का पका हुआ खेत काटने गया। वह खेत गाँव से कुछ दूर जंगल में था। वैसे तो रात में उधर कोई रखवाली नहीं थी। तो भी चोर ने उस नये साथी को खेत के मेंड़ पर खड़ा कर दिया कि वह निगरानी करता रहे कि कही कोई देखता तो नहीं है। वह खुद खेत काटने लग गया।

नये चोर ने थोड़ी ही देर में आवाज लगाई कि -भाई जल्दी उठों ,यहाँ से भाग चलें ,खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है, मैं तो भागता हूँ।, चोर काटना छोड़ कर उठ खड़ा हुआ ओर वह भी भागने लगा। कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पूछा-मालिक कहाँ था? कैसे देख रहा था? उसने कहा- ईश्वर सब का मालिक है। इस संसार में जो कुछ है, उसी का है। वह हर जगह मौजूद है और सब कुछ देखता है। मेरी आत्मा ने कहा-ईश्वर यहाँ भी मौजूद है और हमारी चोरी को देख रहा है। ऐसी दशा में हमारा भागना ही उचित था।

भगवान सब जगह है और सब को देख रहा है। उसके न्याय और दंड से कोई बच नहीं सकता। यह विश्वास करने वाला मनुष्य ही पापों से बच सकता है।

पीड़ितों का हक

यूनान में एक युवक के पास बड़ा सुन्दर घोड़ा था। उसका एक शत्रु उसे किसी भी प्रकार लेना चाहता था। और तरकीब उसे नहीं सूझी तो चालाकी से काम लेने की ठानी। वह युवक रोज शाम को अपने घोड़े पर सवार होकर सैर के लिए जाया करता था। शत्रु ने उसी समय बीमार अपंग का रूप बनाया और रास्ते के किनारे पड़कर कराहने लगा।

युवक बड़ा उदार था। जब घोड़े पर सवार होकर वह उधर से निकल रहा था तो उसकी निगाह बीमार व्यक्ति पर पड़ी। उसने उसे उठाकर घोड़े पर बिठा दिया और खुद पैदल चलने लगा। बस उस शत्रु को मौका हाथ लग गया। वह घोड़े में ड़ड़ड़ड़ उसे भगा ले चला।

उदार युवक ने उसे धूर्त को आवाज देकर रोका और कहा-घोड़ा भले ही ले जाओ पर एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है, उसे सुनते जाओ। शत्रु ने घोड़ा रोक लिया और कहा जा कुछ कहना हो जल्दी कहो। युवक ने कहा-बस इतना ही कहना है कि जिस प्रकार तुमने घोड़ा लिया उसकी चर्चा किसी से न करना नहीं तो कोई वास्तविक बीमार होगा तो भी लोग उसकी सहायता न किया करेंगे।। इस प्रकार बेचारे बेबस लोगों का एक बहुत बड़ा हक मारा जाएगा।

संगति का फल

एक व्यक्ति के पास दो तोते थे, वह कई वर्ष के लिए घर छोड़ परदेश जाने लगा तो उन तोता को पड़ोसियों को दे दिये। एक तोता ब्राह्मण ने ले लिया दूसरा खटीक को दे दिया। दोनों ने वे तोते पाल लिये, वे वहाँ के कार्यों को देखकर कुछ बोलना भी सीख गये।

कई वर्ष बाद वह व्यक्ति जब लौट कर आया और यह देखने गया कि उसके तोते कैसे है तो ब्राह्मण बोले तोते को उसने कहते सुना, दान ड़ड़ड़ड़ और साधना “वह बहुत प्रसन्न हुआ कि तोते ने अच्छी शिक्षा सीखती। फिर वह खटीक के यहाँ गया जहाँ बकरे कटते थे और माँस बिकता था ,तो वहाँ पहुँचा हुअमा तोता कह रहा था। “घर पटकना-काटना “यह बुरी बात तोते को बोलना सुनकर उसे दुःख हुआ। तब एक समझदार व्यक्ति ने कहा इसमें इन तोतों का कोई दोष नहीं। यह तो संगति का फल है। जो जहाँ रहना है वहाँ के वातावरण का प्रभाव उस पर पड़ता है और वह वैसा ही बनने, वैसा ही ढलने लगता है।

संगति के प्रभाव को देखते हुए यह आवश्यक है कि बुरी संगति से बचा जाय और सज्जनों के निकट संपर्क में रहा जाय।

उपयोग में आने वाला धन

एक राजा ने एक, साधु को अपना, राजकोष दिखाया। उसमें ढेरों रत्न भरे पड़े थे ड़ड़ड़ड़। पूछा इन पत्थरों से आपका क्या प्रयोजन सिद्ध होता है? उनने कहा-इनमें लाभ होना तो दूर उलटे सुरक्षा के लिए चौकीदारी का खर्च उठाना पड़ता है।

फिर वह साधु एक विधवा के यहाँ गया जो चक्की पीस कर अपना तथा अपने छोटे बच्चों का गुजारा करती थी। उसने राजा से कहा तुम्हारे खजाने में भरे पत्थरों से तो यह चक्की का पत्थर उत्तम है जिसके सहारे एक कुटुम्ब का भरण-पोषण होता है।

जो जीवन की समस्याओं को सुलझाने तथा उत्कर्ष में सहायक हो वही ड़ड़ड़ड़ है। इसके अतिरिक्त जो जमा कर रखा गया है वह तो भाररूप है। उस से लाभ तो दूर उलटी हानि होती है।

संकल्पों का कल्पवृक्ष

एक व्यक्ति कही जा रहा था, रास्ते में उसे कल्पवृक्ष की छाया में बैठने का संयोग मिला। कल्पवृक्ष में यह गुण होता है कि उसके नीचे बैठकर जो कुछ कामना की जाय वह पूरी हो जाती है। पथिक को यह मालूम न था कि यह कल्पवृक्ष है, पर इससे क्या वह तो अपना प्रभाव दिखता ही है।

पथिक प्यासा था उसने कामना की कि मुझे ठंडा जल मिलता तो कैसा अच्छा होता। कामना करने की देर थी कि शीतल जल सामने उपस्थित हो गया। फिर उसे ड़ड़ड़ड़ लगा। भोजन की ड़ड़ड़ड़ तो थाल मौजूद था उससे उसने खूब तृप्ति प्राप्त की। अब उसे नींद आई और पलंग की इच्छा हुई। बस मसहरीदार पलंग हाजिर था। थका हुआ था नींद आई और सो गया।

शाम को नींद खुली तो देखा कि अँधेरा होता आ रहा है। मंजिल दूर है। उसे डर लगा कि कही ऐसा न हो कि शेर आ जाय और खा जाय। कल्पवृक्ष का तो काम ही यह था कि जो कामना हो उसे पूरा करे। बस दहाड़ता हुआ शेर सामने आ खड़ा हुआ और उसे फाड़कर कर खा गया।।

मनुष्य का संकल्प बल ही कल्पवृक्ष है। उत्तम संकल्प करने से उत्तम परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है और शुभ कार्य बन पड़ते है किन्तु मन में कुविचार भरे रहने से पतन और पाप के ही साधन बन जाते है। इसलिए मनोभावों को कल्पवृक्ष मान कर उनका सदुपयोग ही करना चाहिए।

प्राप्त धन का वितरण

एक अन्धा भीख माँगा करता था। जो पाई पैसे मिल जाते उसी से अपनी गुजर करता एक दिन एक धनी उधर से निकला। उसे अन्धे के फटे हाल पर बहुत दया आई और उसने पाँच रुपये का नोट उसके हाथ पर रखकर आगे की राहली।

उन दिनों नोटों का चलन शुरू ही हुआ था। अन्धे को उसके सम्बन्ध में जानकारी न थी। उसने कागज को टटोल-टटोल कर देखा ओर समझा कि किसी ने ठिठोली की है और उस नोट को खिन्न मन से जमीन पर फेंक दिया।

एक सज्जन पुरुष यह सब देख रहे थे उनने नोट को उठाकर अन्धे को दिया ओर बताया यह तो पाँच रुपये का है। तब वह प्रसन्न हुआ और उस से भोजन, वस्त्र खरीद कर अपनी आवश्यकताएँ पूरी की।

ज्ञान चक्षु के अभाव में हम भी परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाने ओर सदा यही कहते रहते है कि हमारे पास कुछ नहीं।। हमें कुछ नहीं मिला, हम साधन हीन है। पर यदि हमें इसे नहीं मिला ।है उसकी शिकायत करना छोड़ की, जो मिला है उसी की महत्ता को समझे तो मालूम पड़ेगा कि जो कुछ मिला हुआ है वह भी कम नहीं है।


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