जिस प्रकार आग में घी डालने से वह ओर भी जोर से जलने लगती है वैसे ही भोग उपभोगों के द्वारा कामना बढ़ती ही जाती है कभी घटती नहीं ।
“भोग -विलास और सैर ,तमाशे से आत्मा उसी भाँति सन्तुष्ट नहीं होती जैसे कोई चटनी और आचार खाकर अपनी अक्ष्1धाँ को शांत नहीं कर सकता