वह मित्र नहीं कि जिसके क्रोध से भय हो, और जिसके व्यवहार में सन्देह हो। किन्तु जिस मित्र पर पिता का सदद विश्वास हो उसे ही सच्चा मित्र जानों। अन्य तो केवल मिलने-जुलने ड़ड़ड़ड़ साध्य मित्र है।”
जो कोई अकारण (निःस्वार्थ भाव से) मित्रता का व्यवहार करे वही बन्धु, मित्र, अवलम्बन, आश्रय रूप है। अकारण मित्रता करने वाले मित्र नहीं होते।”
“चंचल वृति वाले, वृद्धों में न उठने बैठने वाले, डाँवाडोल मन वाले पुरुषों की मित्रता सर्वथा अनिश्चित है । “
“धन हो अथवा न हो मित्रों का उचित सत्कार करना ही चाहिये। इसके बिना मित्रों की मित्रता का पता नहीं लग सकता।”
-विदुर नीति