“दो मनुष्य ईश्वर को प्रसन्न करते हैं-एक तो वह जो सच्चे हृदय से उसकी सेवा करता हैं, क्योंकि वह उसे जानता हैं, दूसरा वह जो निष्कपट भाव से उसे ढूँढ़ता हैं क्योंकि वह उसे नहीं जानता।”
“हमें ईश्वर का सच्चा साक्षात्कार तभी होता हैं, जब हम उसके सामने अपनी याचनाएँ न लेकर, किन्तु अपनी भेंटें लेकर जाते हैं।”
“यदि कोई चाहे कि वह दुनियाँ में अपना स्वार्थ साधन भी करे और ईश्वर को भी प्राप्त कर ले, तो यह असम्भव है।”