गीत संजीवनी-5

तू सतचित् आनन्दमयी

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तू सतचित् आनन्दमयी है- यह सबको बतलायें॥
ऐसी शक्ति हमें दो माता- हम तेरे गुण गायें॥

जग में जो कुछ सत्य- नित्य है, वह तेरी ही छाया।
उसको ही परिवर्तित करती- रहती तेरी माया॥
समझ सकें तेरे रहस्य सब- हम जग को समझायें॥

तेरा ही तप- तेज चमकता- सूरज की किरणों में।
मिलती प्राणों को चेतनता- तेरे ही चरणों में॥
स्वयं रहें गतिमान और सबको गतिमान बनायें॥

है आनन्द रूप तू जननी, जिसके हित अकुलाता।
उसे प्राप्त करने इन्सान, न क्या- क्या खेल रचाता॥
सबको दें आनन्द और, हम भी उस बीच समायें॥

तेरा यह स्वरूप प्रज्ञामय- हम सब समझ न पाते।
तुझसे दूर हुए हैं माता- इसीलिए दुःख पाते॥
अपने को तुझमें लय कर दें- तुझे स्वयं हम पायें॥

विश्व संगीतमय है, संगीत ही इसकी प्रेरणा और प्राणशक्ति है। यह तत्व इतना महत्त्वपूर्ण और शक्ति संपन्न है कि इसके उपयोग से हम मृत्यून्मुख जीवन को अमरत्व की ओर अग्रसर कर सकते हैं। -- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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