गीत संजीवनी-5

देवसंस्कृति दिग्विजय

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देवसंस्कृति दिग्विजय को, चल पड़ी चतुरंगिणी।
धन्य होंगे जो कि, इस अभियान से जुड़ जायेंगे॥

नवसृजन अभियान युग की, शक्ति का प्रतिमान है।
देव ऋषियों- मानवों के, योग से गतिमान है॥
नवसृजन के यज्ञ से, जो भी जुड़ा इन्सान है।
ईश का मिलता उसे, करुणा भरा अनुदान है॥
जो समर्पण भाव से इस यज्ञ के होता हुए-
वे सभी साधन, सुसन्तति और सद्गति पायेंगे॥

है निहित इस यज्ञ में ही, राष्ट्र की अभ्यर्थना।
बलवती होती बहुत, राष्ट्रीयता की भावना॥
राष्ट्र हित पुरुषार्थ की, मिलती इसी से प्रेरणा।
और दैवी शक्तियों में, संगठन की चेतना॥
देवसंस्कृति विश्व को फिर, एक कर दिखलायेगी॥
विश्ववसुधा के सहज हम, नागरिक बन जायेंगे॥

श्रेष्ठतम इस यज्ञ से, भीषण उठा तूफान है।
दुष्टता के पाँव अब, जमना नहीं आसान है॥
अब यहाँ दुष्वृत्ति कोई, भी नहीं टिक पायेगी।
फिर धरा निर्मल बहुत, सुख शान्तिमय हो जायेगी॥
विश्व तब होगा सुवासित, वृक्ष- सुमनों से भरा-
वायु बनकर हर सुमन की, गन्ध हम फैलायेंगे॥

मुक्तक-

देवसंस्कृति की सीता को, असुर चुराकर पुनः ले गये।
युगऋषि उनको मुक्त कराने, का अनुपम अभियान रच गये॥
तप करके जो संस्कृति की, गरिमा को पुनः बढ़ायेंगे।
वे सब अपना अपने कुल का, यश, सौभाग्य बढ़ायेंगे॥

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