गीत संजीवनी-5

तपः पूत यह कौन दमकता

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तपःपूत यह कौन दमकता- जिसका मुख सूरज सा।
क्रान्तिदूत यह कौन महकता- जिसका यश मलयज सा॥

अन्धकार को चीर धधकती है मशाल यह कैसी।
उद्भिज से खिंचते हैं सब जल रही ज्वाल यह कैसी॥
यह कैसा संकेत मूल हर आत्मा अकुलाती है।
केन्द्र बिन्दु यह कौन जहाँ चेतना खिंची जाती है॥
मनःसरोवर में उगता- संकल्प नया पंकज सा॥

कोई दृष्टि नियन्त्रित करती पथ पर संग चलने को।
उमड़ा पड़ता स्नेह स्रोत बाती में मिल जाने को॥
किसके मौन निमन्त्रण ने मन आन्दोलित कर डाला।
ललक जगी आहुति बनने की लख युग यज्ञ निराला॥
परिचित सा है ऋत्विज लगता- है दधीचि वंशज सा॥
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