गीत संजीवनी-5

देवसंस्कृति वेदना

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देवसंस्कृति वेदना अनुभव करे जो,
वह तरुण पीढ़ी बुलाई जा रही है।
जो कि युगऋषि के करे संकल्प पूरे,
बस वही विद्या पढ़ाई जा रही है॥

कई शिक्षा संस्थाएँ चल रही हैं,
किन्तु पीढ़ी भोगवादी ढल रही है।
लक्ष्य जिनका मात्र अर्थोपार्जन है,
वासनाएँ कामनाएँ पल रही हैं॥
आचरण में अनैतिकता घुस गई है,
और नैतिकता भुलाई जा रही है॥

शिष्य आरुणि और नचिकेता कहाँ है,
विवेकानन्द राष्ट्र के चेता कहाँ हैं।
चन्द्रगुप्त, चाणक्य जैसे क्रान्तिदर्शी,
राष्ट्र निर्माता व उद्गाता कहाँ हैं॥
शील, संयम, शौर्य, सेवा, समर्पण की,
साधना क्यों कर भुलाई जा रही है॥

युवा अपने में करें देवत्व जागृत,
बनें बजरंग संस्कृति सीता बचाने।
आपने व्यक्तित्व अपना गढ़ लिया तो,
काम आएँ राष्ट्र को ऊँचा उठाने॥
भूमिका युग अग्रदूतों की निभाने,
फिर नई पीढ़ी बनाई जा रही है॥

ऊर्जा गुरुदेव के तप की यहाँ है,
युग सृजन संकल्प के व्रत की यहाँ है।
ईंट कच्ची रह गई व्यक्तित्व की यदि,
पकाने की और फिर भट्टी कहाँ है॥
नहीं कुछ भी असंभव, संकल्प बल से,
शिल्प की यह विधि बताई जा रही है॥

मुक्तक-

संस्कृति हित कुछ कर दिखलाओ, गुरुवर के सेनानी।
शुभ संस्कारों को फैलाओ, बनकर युग निर्माणी॥

कालिय मद मर्दन कियो, कृष्ण कुँवर नन्दलाल।
नृत्य काल पदघात से, प्रकट भये सब ताल॥
रतन चतुर्दश मथि लियो, देव दनुज वहि काल।
प्रमुदित मन निरतत फिरे, इमि प्रकटे सब ताल॥
-- पागलदास
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