थाम लो भारत माँ के लाल, क्रान्ति की जलती लाल मशाल॥
संस्कृति रोती है अविराम, कहाँ हैं राम और घनश्याम।
करे जो असुर तत्त्व का नाश, काट दें दानवता का पाश।
स्वयं जल मेटे तिमिर कराल॥ क्रान्ति की.................॥
रूढ़ियों ने जकड़ा है आज, अन्धविश्वासी हुआ समाज।
बढ़ी है कुप्रथाओं की बेल, बना जीवन विषयों का खेल।
दूर आध्यात्मिकता दी डाल॥ क्रान्ति की.................॥
मनुज में उदित करो देवत्व, लगाओ उसमें अपना सत्व।
उतारो इस धरती पर स्वर्ग, तुम्हीं से शोभित है यह सर्ग।
बदल दो युग की टेढ़ी चाल॥ क्रान्ति की.................॥
मुक्तक-
आदमी जकड़ा हुआ है, दुर्गुणों के पाश में।
और आडम्बर घुसे हैं, आस्था विश्वास में॥
कुप्रथाओं, रुढ़ियों से है समाज ग्रसित हुआ।
क्रान्ति की जलती मशालें थाम लो अब हाथ में॥
संगीत के प्रभाव से शारीरिक शिक्षा में सरसता एवं सजीवता आ जाती है।