प्रेरणा– यज्ञ शुभकार्य है, देवकार्य है। यज्ञ के प्रयोग में आने वाली हर वस्तु शुद्ध और पवित्र रखी जाती है। देवत्व से जुड़ने की पहली शर्त पवित्रता ही है। हम देवत्व से जुड़ने के लिए, देव कार्य करने योग्य बनने के लिए मंत्रों और प्रार्थना द्वारा, भावना, विचारणा एवं आचरण को पवित्र बनाने की कामना करते हैं।
क्रिया और भावन – सभी लोग कमर सीधी करके बैठें। दोनों हाथ गोद में रखें। आंखें बन्द करके ध्यान मुद्रा में बैठें।
- अब मंत्रों सहित जल सिंचन होगा। भावना करें कि हम पर पवित्रता की वर्षा हो रही है।
- हमारा शरीर धुल रहा है – आचरण पवित्र हो रहा है।
- हमारा मन धुल रहा है विचार पवित्र हो रहे हैं। हमारा हृदय धुर रहा है – भावनाएं पवित्र हो रही हैं।
सिंचन करने वालों को संकेत करें तथा सिंचन मंत्र सूत्र खंड-खंड में दुहरवायें, विराम के स्थानों पर चिह्न (/) लगे हैं।
ॐ पवित्रता मम/मनःकाय/अन्तःकरणेषु/संविशेत्।
सब पर सिचंन होने तक पुनः पुनः उक्त वाक्य दुहरायें
भावना करें कि हमें पवित्रता का अनुदान मिला, हम अंदर-बाहर से पवित्र हो गये। हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें,
पवित्रता हमें सन्मार्ग पर चलाये
ॐ पवित्रता नः/सन्मार्गं नयेत् ।
पवित्रता हमें महान् बनाये
ॐ पवित्रता नः/महत्तं प्रयच्छतु ।
पवित्रता हमें शान्ति प्रदान करे
ॐ पवित्रता नः/शान्तिं प्रददातु ।