प्रेरणा– सूर्य से इस सारे विश्व में प्राण का संचार होता रहता है। वृक्ष-पशु आदि प्रकृति से सहज क्रम में सीमित प्राण शक्ति धारण करते रहते हैं। मनुष्य में यह क्षमता है कि वह भावनाओं के अनुरूप बड़ी मात्रा में प्राणशक्ति को आकर्षित कर सकता है, धारण कर सकता है। शरीर से सामान्य दिखने पर भी महाप्राण-महामानवों ने असाधारण कार्य किये हैं। हम भी उज्ज्वल भविष्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष प्राणशक्ति धारण करने का प्रयोग करते हैं।
क्रिया और भावना- कमर सीधी करके ध्यानमुद्रा में बैठें। ध्यान करें कि हमारे चारों ओर श्वेत बादलों की तरह दिव्य प्राण समुद्र लहरा रहा है। हम प्रार्थना करें क हे विश्व के स्वामी- हे महाप्राण, हमें बुराइयों से छ़ड़ाइये, श्रेष्ठताओं से जोड़िये।
अधोलिखित मंत्र बोलने के बार प्राणायाम करने का निर्देश करें।
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव, यद्भद्रं तन्नऽआसुव ।
क्रिया- धीरे-धीरे दोनों नथुनों से श्वास खींचें, थोड़ा रोकें, धीरे से छोड़ें, थोड़ी देर बाहर रोकें।
भाव निर्देश- प्राणायाम के साथ भावना करें-
- हमारा रोम-रोम सविता का तेज सोख रहा है, हमारा शरीर प्राणवान् बन रहा है। हमारा मन सविता का तेज सोख रहा है, हमारा मन तेजस्वी हो रहा है। हमारा हृदय सविता का तेज सोख रहा है, हमारा हृदय तेजोमय हो रहा है। हम बाहर-भीतर से तेजोमय हो गये हैं।