युग यज्ञ पद्धति

देव नमस्कारः

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 प्रेरणा- नमन का अर्थ हैअभिवादन-प्रणाम। देव शक्तियों का अभिवादन अर्थात् उनका सम्मान करना। हमारे मन का झुकाव देवत्व की ओर होना चाहिए। प्रणाम नम्रता-शालीनता का भी प्रतीक है। जो विनम्र होता है, सो पाता है; इस उक्ति का अर्थ है कि सज्जन-शालीन को सब लोग कुछ देना चाहते हैं, उद्दण्ड अहंकारी को नहीं।

हमारा अभ्यास देवत्व की ओर अग्रगमन का बने। देवत्व के नौ स्रोत-स्वरूप यहां दर्शाये गये हैं। जहां ये शक्तियां समाज में दिखें, वही झुकना कल्याणकारी है।

क्रिया और भावना- सभी लोग हाथ जोड़ें। जिस क्रम से कहा जाए उसी क्रम से देव शक्तियों का स्मरण करें। उन्हें नमन करें। वे हमें सही मार्ग प्रदान करती रहें। प्रगति के लिए सहयोग प्रदान करती रहें।

(हिन्दी के वचन सुनें, संस्कृत सूत्र दुहरायें।)

जो सदा देती रहती हैं और देते रहने की प्रेरणा प्रदान करती हैं, उन देव शक्तियों को नमन।

सर्वाभ्यो/ देवशक्तिभ्यो नमः

2- जिन्होंने अपने आपको दिव्य बनाया और हमारे लिए दिव्य वातावरण बनाने हेतु स्वयं को खपाया, उन देवपुरुषों को नमन।

सर्वेभ्यो/ देवपुरुषेभ्यो नमः

3- जिन्होंने अपने आप को जीता और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन में प्राणपण से संलग्न रहे, उन महाप्राणों को नमन।

सर्वेभ्यो- महाप्राणेभ्यो नमः

4- जो मूढ़ता और अनीति से जूझने की सामर्थ्य प्रदान करते हैं, उन महारुद्रों को नमन।

सर्वेभ्यो/ महारुद्रेभ्यो नमः

5- अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले आदित्यों को नमन।

सर्वेभ्यो/ आदित्येभ्यो नमः

6- ममता की मूर्ति, शुभ-सद्भाव जगाने वाली, कुपुत्रों को सुधारने वाली, सुपुत्रों को दुलारने वाली समस्त मातृशक्तियों को नमन।

सर्वाभ्यो/ मातृशक्तिभ्यो नमः

7- जिनमें सुसंस्कारों की सुवास भरी है, जो हर सम्पर्क में आने वाले को पुण्य-प्रेरणा करते हैं, उन दिव्य क्षेत्रों को नमन।

सर्वेभ्यः/ तीर्थेभ्यो नमः

8- जिसके अभाव में मनुष्य अज्ञान-अंधकार में ही भटकता रह जाता है, उस महाविद्या को नमन।

महाविद्यायै नमः

9- जिसे दुर्बलता से लगाव नहीं- जो उद्दण्डता को सहन नहीं करता, उस महाकाल को नमन।

एतत्कर्मप्रधान/श्रीमन्महाकालाय नमः

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