युग निर्माण योजना के अंतर्गत-सद्भाव एवं सद्विचार संवर्धन के लिए गायत्री
साधना तथा सत्कर्म के विकास-विस्तार के लिए यज्ञीय प्रक्रिया को आधार
बनाकर, परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में एक जन-अभियान
प्रारंभ किया गया था। दैवी अनुशासन एवं निर्देशों का पूरी तत्परता-पूरी
निष्ठा से पालन होने से, दैवी संरक्षण में यह अभियान आश्चर्यजनक गति से
बढ़ता चला गया।
समय की मांग को ध्यान में रखकर यज्ञीय प्रक्रिया को अधिक सुगम तथा
अधिक व्यापक बनाने के लिए अनेक कदम उठाये गये, जिनके कारण जन-जीवन में
यज्ञीय भावना का प्रवेश कराने में पर्याप्त सफलता मिलती चली गयी। इसी क्रम
में दीप यज्ञों का अवतरण हुआ, जो अत्यधिक प्रभावशाली एवं लोकप्रिय सिद्ध
हुए। इनमें कम समय, कम श्रम तथा कम साधनों से भी बड़ी संख्या में व्यक्ति
यज्ञीय जीवन पद्धति से जुड़ने लगे। दीपक-अगरबत्ती सभी धार्मिक स्थलों में
प्रज्वलित होते हैं, इसलिए उस आधार पर सभी वर्गों के लोग बिना किसी झिझक के
दीपयज्ञों में सम्मिलित होते रहते हैं।