युग यज्ञ पद्धति

हमारा युग निर्माण सत्संकल्प

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15.1. प्रेरणा- सत्संकल्प हमारे मिशन के आधारभूत सिद्धान्तों और मान्यताओं का सार-संग्रह है। पूजा, जप आदि के अन्त में इसका पाठ नित्य किया करें। ऐसा करने से आपको न केवल श्रेष्ठ जीवन जीने की प्रेरणा मिलती रहेगी, वरन् आप मिशन की आत्मा को पहचान कर उसके साथ एकरस भी हो सकेंगे। (सत्संकल्प सामूहिक रूप से दुहराया जाये।) 1. हम ईश्वर को/ सर्वव्यापी, न्यायकारी मानकर/ उसके अनुशासन को/ अपने जीवन में उतारेंगे। 2. शरीर को भगवान् का मंदिर समझकर/ आत्म संयम और नियमितता द्वारा/ आरोग्य की रक्षा करेंगे। 3. मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से/ बचाये रखने के लिए/ स्वाध्याय एवं सत्संग की/ व्यवस्था रखे रहेंगे। 4. इन्द्रिय-संयम/ अर्थ-संयम/ समय-संयम/ और विचार-संयम का/ सतत अभ्यास करेंगे। 5. अपने आपको/ समाज का एक अभिन्न अंग मानेंगे/ और सबके हित में/ अपना हित समझेंगे। 6. मर्यादाओं को पालेंगे/ वर्जनाओं से बचेंगे/ नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करेंगे/ और समाजनिष्ठ बने रहेंगे। 7. समझदारी, ईमानदारी/ जिम्मेदारी और बहादुरी को/ जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे। 8. चारों ओर/ मधुरता, स्वच्छता,/ सादगी एवं सज्जनता का/ वातावरण उत्पन्न करेंगे। 9. अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा/ नीति पर चलते हुए/ असफलता को शिरोधार्य करेंगे। 10. मनुष्य के मूल्यांकन की कसौटी/ उसकी सफलताओं/ योग्यताओं/ एवं विभूतियों को नहीं/ उसके सद्विचारों और/ सत्कर्मों को मानेंगे। 11. दूसरों के साथ/ वह व्यवहार नहीं करेंगे/ जो हमें अपने लिए पसंद नहीं। 12. नर-नारी परस्पर/ पवित्र दृष्टि रखेंगे। 13. संसार में सत्प्रवृत्तियों के/ पुण्य-प्रसार के लिए/ अपने समय/ प्रभाव, ज्ञान/ पुरुषार्थ एवं धन का/ एक अंश नियमित रूप से लगाते रहेंगे। 14. परम्पराओं की तुलना में/ विवेक को महत्त्व देंगे। 15. सज्जनों को संगठित करने/ अनीति से लोहा लेने/ और नवसृजन की गतिविधियों में/ पूरी रुचि लेंगे। 16. राष्ट्रीय एकता/ एवं समता के प्रति/ निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग/ भाषा, प्रान्त/ सम्प्रदाय आदि के कारण/ परस्पर कोई भेद-भाव न बरतेंगे। 17. मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है/ इस विश्वास के आधार पर/ हमारी मान्यता है कि/ हम उत्कृष्ट बनेंगे/ और दूसरों को श्रेष्ठ बनायेंगे/ तो युग अवश्य बदलेगा। 18. ‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा’/‘हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा’/ इस तथ्य पर/ हमारा परिपूर्ण विश्वास है। शान्ति-अभिषिंचनम् 26.1. प्रेरणा- दीपयज्ञ के इस आध्यात्मिक प्रयोग से जो प्रेरणा और अनुदान प्राप्त हुए हैं, वे स्थिर हों, फलित हों, सभी तरह के पापों का शमन हो, सभी को शान्ति प्राप्त हो। इस भावना के साथ शान्ति पाठ करें। जिन्हें मंत्र याद है, वे सभी हमारे साथ-साथ शान्ति पाठ करें। (कार्यकर्त्तागण कलश का जल लेकर सब पर सिंचन करें।) ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष शान्तिः, पृथिवी शान्तिरापः, शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः, शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः, सर्व शान्तिः, शन्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि ।। ॐ शांन्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!! सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु ।।
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