युग यज्ञ पद्धति

संकल्प सूत्र धारणम्

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प्रेरणा – पूज्य गुरुदेव का कथन है ‘‘मनुष्य महान् है और उससे भी महान् है उसका सृजेता’’। इन दिनों मनुष्य मात्र पर समस्याओं के संकट के जो बादल छाये हुए हैं, उनका निवारण इस सृष्टि में केवल मनुष्य ही कर सकता है। यदि मनुष्य को उचित मार्ग न सूझ पड़े अथवा उसकी शक्ति कम पड़े, तो बचने का एक ही रास्ता रह जाता है कि सृजेता से अधिक प्रखर सूझबूझ एवं शक्ति प्राप्त की जाय। आज ऐसी ही स्थिति है, जब मनुष्य स्वयं पैदा किये संकटों के सामने अपने को लाचार अनुभव कर रहा है। ऐसे में परमात्मा से नयी सूझबूझ एवं सहायता अपेक्षित है।

 पूज्य गुरुदेव का वचन है कि ‘सृजेता-परमात्मा, मनुष्यता पर छाये संकटों का निवारण करके, उज्ज्वल भविष्य की संरचना का संकल्प कर चुका है। सूक्ष्म जगत् में वह प्रवाह उमड़ पड़ा है। उसे स्थूल-दृश्य रूप देने के लिए शरीरधारी ईश्वरनिष्ठों की आवश्यकता है। ऐसे श्रद्धावान् व्यक्ति चाहिए, जो दैवी संकल्प का एक-एक, छोटा-छोटा अंश अपने जीवन में धारण करें, उसे आचरण में लाकर वातावरण बदलना प्रारम्भ करें। इसे यों भी कह सकते हैं कि उज्ज्वल भविष्य रचने के लिए महाकाल ने नैष्ठिकों को सक्रिय साझेदारी के लिए आमंत्रित किया है। इतिहास साक्षी है कि युग परिवर्तन करने वाली अवतारी चेतना के साथ साझेदारी अनुपम सौभाग्य का आधार बनती है। रीझ-वानरों, गीद्ध-गिलहरी, ग्वाल-पाण्डव, बुद्ध के चीवरधारी आदि ऐसे ही सौभाग्यशाली थे। वर्तमान परिवर्तन प्रवाह में, महाकाल के साथ साझेदारी के सूत्र हैं—उपासना, साधना, आराधना और दो तप-समयदान एवं अंशदान

 उपासना- (पास बैठना) अपनी चेतना को सांसारिक विषयों से समेट कर, परमात्मा चेतना के निकट ले जाना, उससे भावनात्मक आदान-प्रदान करना, उससे एक होने का प्रयास करना। 

विधि- भावना की जाय कि जिस तरह उगते सूर्य का प्रकाश हमें चारों ओर से घेर लेता है, उसी प्रकार हमारे आवाहन से परमात्म चेतना हमारे सब ओर छा गयी है। गायत्री मंत्र के जप के माध्यम से हम उस दिव्य प्राण की धारा को अपने अंदर, शरीर, मन, अंतःकरण में धारण कर रहे हैं। यह प्रयोग कम से कम पांच मिनट नित्य किया जाये। अधिक हो सके तो अच्छा है। 

साधना- (अपने जीवन को ईश्वरीय अनुशासन के अनुरूप ढालना) अंतःप्रेरणा, स्वाध्याय, सत्संग आदि माध्यमों से उज्ज्वल भविष्य के अनुरूप प्रवृत्तियां एवं अभ्यास डालने का प्रयास किया जाये। सत्प्रवृत्तियों, सत्प्रयासों को संकल्पपूर्वक अपनाया, जगाया और बढ़ाया जाये। 

विधि- महाकाल की प्रेरणा से पूज्य गुरुदेव ने उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ने योग्य, जीवन के हर पक्ष को अपनी तप साधना से सिद्ध करके, युग साहित्य के रूप में सबके लिए सुलभ बना दिया है। युग साहित्य का अध्ययन, मनन-चिंतन नियमित करने से जीवन साधना का प्रखर क्रम चल पड़ता है। पूज्यवर के विचारों को आत्मसात् करने के लिए मिशन की पत्रिका या पुस्तिका का न्यूनतम एक लेख नित्य पढ़ें।

आराधना- (अपने पुरुषार्थ से परमात्मा की सेवा का प्रयास करना) परमात्मा अरूप-अशरीर है, उसे शरीरधारियों की सेवा की आवश्यकता नहीं है। किन्तु यह संसार उसका दृश्य रूप है ऐसा मानकर उसके इस सुन्दर बगीचे को और अधिक सुन्दर बनाने का प्रयास करना ही सच्ची ईश्वर आराधना है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जिसकी मूल आवश्यकताएं बहुत कम हैं और क्षमताएं बहुत बड़ी हैं। अपनी क्षमताओं का उपयोग केवल अपने लिए किया जाये, तो जीवन में व्यसन बढ़ाने होंगे। इसलिए मानवी क्षमताओं का भरपूर प्रयोग करने के इच्छुक समझदारों के लिए एक ही रास्ता रह जाता है कि अपनी शेष क्षमताओं का उपयोग ईश्वर आराधना, सेवा-साधना के लिए ही करें। ऐसा न करने पर या तो क्षमताओं का जागरण ही नहीं होगा अथवा दुरुपयोग होने लगेगा। जो व्यक्ति लोक सेवा के लिए अपनी क्षमताएं लगाने का प्रयास करते हैं, उन्हें दैवी शक्ति प्रवाह मिलने लगता है, क्षमताएं बढ़ती हैं और सुख-सौभाग्य का सृजन करके सार्थक कहलाती हैं। 

विधि- उज्ज्वल भविष्य की दिशा में बढ़ने के जो सूत्र अपने हाथ उपासना-साधना के माध्यम से आयें, उन्हें अपने परिचित परिजनों में, समाज में जन-जन तक प्रसारित करने का भाव भरा प्रयास करते रहें। उज्ज्वल भविष्य की प्रार्थना-गायत्री उपासना करने तथा मिशन के विचारों के अध्ययन की प्रेरणा दें।

दो तप- उपासना, साधना, आराधना को जीवन में स्थान देने के लिए दो तप करने पड़ते हैं— (1) समयदान (2) अंशदान। 

समयदान- समय मनुष्य की मूल सम्पदा है। समय समाप्त अर्थात् जीवन समाप्त। जब तक जीवन है, तब तक समय है। जो निर्जीव जीवन जीते हैं, उन्हें भगवान् के लिए समय खोजे नहीं मिलता; जबकि भगवान् ने सबको बिना भेद-भाव के प्रतिदिन 24 घंटे का समय दिया है।

 विधि- संकल्प करें कि 24 घंटे में से कम से कम एक घंटे का समय सेवा-साधना के लिए निकालेंगे। मनुष्य की हर योग्यता हर विभूति उसके समय के साथ जुड़ी है। भगवान् की दी विभूतियां भगवान् के लिए लगानी हैं, तो समय भगवान् के लिए निकालना ही होगा।

अंशदान- सारे पदार्थ, सारे साधन भगवान् के बनाये हुए हैं। मनुष्य अपने उपयोग के लिए उनमें थोड़ा हेर-फेर भर कर सकता है। परमात्मा के बनाये साधन, परमात्मा की दी विभूतियों के सहारे हमने अपने अधिकार में ले रखे हैं। उनका एक अंश भी भगवान् के निमित्त न निकाल पाना स्वयं अपने दुर्भाग्य को न्यौता देना है।

विधि- संकल्प करें कि सत्साहित्य प्रसार के लिए न्यूनतम 50 पैसा प्रतिदिन अवश्य निकालेंगे। जिनसे बन पड़े, वे एक दिन की आजीविका दें।

क्रिया और भावना- उज्ज्वल भविष्य की रचना के लिए महाकाल के साथ साझेदारी के लिए उपासना, साधना, आराधना, समयदान एवं अंशदान के सम्बन्ध में जो व्रत लिये हैं, उनका संकल्प ग्रहण करना है। साझेदारी के इच्छुक व्यक्ति संकल्प सूत्र-कलावा बायें हाथ में लें, दाहिने से ढंग लें।

                                                                              संकल्प करें
हम ईश्वर का अनुशासन स्वीकार करते हैं 
ॐ ईशानुशासनम्-स्वीकरोमि। 

मर्यादाओं का पालन करेंगे 
ॐ मर्यादां/चरिष्यामि।

जो वर्जित हैं, वे आचरण नहीं करेंगे 
ॐ वर्जनीयं-नो चरिष्यामि। 

संकल्प सूत्र मस्तक से लगायें और गायत्री मंत्र का एक साथ उच्चारण करते हुए परस्पर बांध लें। अब हाथ जोड़कर प्रार्थना करें (दुहरवायें)— हे महाकाल! उज्ज्वल भविष्य की/ रचना के लिए/ अपने संकल्पों को/ पूरा करने के लिए/ हमें उपयुक्त शक्ति/ मनोवृत्ति तथा प्रेरणा दें। हे प्रभो! हमारे संकल्प पूरे हों/ हम सुख-सौभाग्य/ श्रेय, पुण्य/ तथा आपकी कृपा के/ अधिकारी बनें। आपसे दिव्य अनुदान पाने/ और उन्हें/ जन-जन तक पहुंचाने की/ हमारी पात्रता बढ़ती रहे। निर्देश- व्रत निर्धारण अपने मन में भावनापूर्वक कर लें और उनका निष्ठापूर्वक निर्वाह करें।
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