. प्रेरणा - तिलक श्रेष्ठ को किया जाता है। शरीर की सारी क्रियाओं का संचालन विचारों से-मस्तिष्क से होता है। शरीर विचारों से चलने वाला यंत्र है। विचारों में श्रेष्ठता का-देवत्व का संचार होता रहे, तो सारे क्रिया-कलाप श्रेष्ठ होते हैं और मनुष्य गौरव प्राप्त करता है। मस्तिष्क को देवत्व का स्पर्श देने के लिए हम तिलक करते हैं।
क्रिया और भावना – रोली या चंदन, सभी याजक अपनी अनामिका उंगली में लें उसे सामने रखें तथा दृष्टि उसी पर टिकायें। प्रार्थना करें कि देव शक्तियां इस चन्दन-रोली के माध्यम से हमारे मस्तिष्क को सुसंस्कारित बना रही हैं।
प्रार्थनाएं भावनापूर्वक सुनें, समझें और संस्कृत सूत्र दुहरायें-
-हमारा मस्तिष्क शान्त रहे
ॐ मस्तिष्कं/शान्तं भूयात्
इसमें अनुचित आवेश प्रवेश न करने पायें
ॐ अनुचितः आवेशः/मा भूयात्।
हमारा मस्तिष्क सदा ऊंचा रहे
ॐ शीर्षं/उन्नतं भूयात्।
इसमें विवेक सदैव बना रहे
ॐ विवेकः स्थिरीभूयात्।
इस प्रकार प्रार्थना के बाद गायत्री मंत्र बोलते हुए भावनापूर्वक चंदन-रोली मस्तक पर लगा लें।