युग यज्ञ पद्धति

गुरु वन्दना

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  प्रेरणा- परमात्मा चेतना दो रूपों में कार्य करती है। एक रूप है-नियन्ता का, जो सारे विश्व को अनुशासन में चलाता है। सही चलने वालों को पारितोषिक तथा गलत चलने वालों को दण्ड देता है।

दूसरा है- गुरु; जो विश्व व्यवस्था के अनुशासन समझाता है। उनको जीवन के अभ्यास क्रम में शामिल करने के लिए प्रेरणा, मार्गदर्शन, सहयोग देता है।

हम यज्ञ के माध्यम से उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ने की दिशा, शक्ति और प्रवृत्ति चाहते हैं। इसलिए गुरुदेव का श्रद्धापूर्वक आवाहन-वन्दन करते हैं।

 क्रिया और भावना प्रतिनिधि देव मंच पर गुरुदेव के प्रतीक का पूजन करें। सभी लोग हाथ जोड़कर मन्त्रोच्चारण के साथ भावना करें- हे परम कृपालु! हमें मार्गदर्शन और सहयोग देने के लिए अपनी उपस्थिति का बोध बराबर कराते रहेंहमें भटकने दें, जगाते रहेंबढ़ाते रहें।

अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम् 

तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

यथा सूर्यस्य कान्तिस्तु, श्रीरामे विद्यते हि या

सर्वशक्तिस्वरूपायै, दैव्यै भगवत्यै नमः ।।

श्रीगुरवे नमः, आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि

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