प्रेरणा- जिसके प्रति वास्तविक श्रद्धा हो, तो उसका पूजन करने का मन होता है। पूजन में सम्मान की भावना को क्रिया रूप में व्यक्त किया जाता है। श्रद्धा को सक्रिय बनाना ही पूजन का वास्तविक स्वरूप है।
पूजन में कुछ अर्पित किया, चढ़ाया जाता है। जिनको हम श्रद्धा से नमन कर रहे हैं, उनका कार्य-प्रभाव क्षेत्र बढ़े, इसके लिए अपना योगदान देने के लिए मन आकुल-व्याकुल हो उठता है। यह श्रद्धा भरा सहयोग ही वास्तविक पूजन सामग्री है। पंचोपचार पूजन के पांच प्रतीक हमारी पांच प्रकार की सामर्थ्यों के प्रतीक हैं, जिन्हें हम देव शक्तियों के निमित्त अर्पित करते हैं।
क्रिया और भावना- देवमंच के पास नियुक्त प्रतिनिधि गन्धाक्षत, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य मन्त्रोच्चार के साथ अर्पित करें। सभी लोग हाथ जोड़कर प्रार्थना सुनें-भावनाएं अर्पित करें।
- हे देव! गन्ध–अक्षत के रूप में हमारे पुण्यकर्मों, हमारी अटूट श्रद्धा-निष्ठा को स्वीकारें।
- हे देव! पुष्प के रूप में हमारे अन्तः का उल्लास आपको अर्पित है।
- हे देव! धूप-दीप के रूप में हमारी प्रतिभा और योग्यता को स्वीकार करें।
- हे देव! नैवेद्य के रूप में हमारे साधन-सम्पदा का एक अंश समर्पित है। इसे स्वीकार करें।
मन्त्र दुहरवायें—
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः/गन्धाक्षतं/पुष्पाणि/धूपं/दीपं/नैवेद्यं समर्पयामि ।। ततो नमसकारम् करोमि ।
अब दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें
ॐनमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटी युगधारिणे नमः ।।