युग यज्ञ पद्धति

कलश पूजनम्

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प्रेरणा- परमात्मा की शक्ति धाराएं, देवशक्तियां विश्व की व्यवस्था बनाने में जुटी रहती हैं। हम लोकमंगल के लिए यज्ञ कर रहे हैं। ऐसे कार्यों में देव शक्तियां अवश्य सहयोग करती हैं, हम उनका आवाहन करते हैं, ताकि वे हमें मार्गदर्शन दें, शक्ति दें। क्या हमारे बुलाने से देव शक्तियां आयेंगी? हां! यदि हमारी श्रद्धा-भावना और श्रेष्ठ कर्म करने की ललक उनकी कसौटी पर खरी उतरती हैं, तो वे प्रार्थना स्वीकार करती हैं। सभी देव शक्तियों को हम कलश में स्थापित करते हैं। कलश ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। इसमें धारण करने की क्षमता है-पात्रता है और श्रद्धा रूप जल है। विभिन्न प्रकार के देवता एक साथ सहयोगपूर्वक रह लेते हैं, इसीलिए देवता कहलाते हैं।


क्रिया और भावना- निर्धारित प्रतिनिधि कलश पूजन करें। मंत्रोच्चार के समय सब लोग हाथ जोड़कर मन ही मन प्रार्थना करें। हे देव! हमारी श्रद्धा निखारें। हे देव! सत्कार्य करने की हमारी प्रवृत्ति उभरे। हे देव! भिन्न-भिन्न स्वभाओं और भिन्न-भिन्न योग्यताओं को, सत्कार्यों के लिए एक जुट होना सिखायें

ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः, कण्ठे रुद्रः समाश्रितः ।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा, मध्ये मातृगणाः स्मृताः ।।1।।

कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः, सामवेदो ह्यथर्वणः ।।2।।

अंगैश्च सहिताः सर्वे, कलशन्तु समाश्रिताः ।
 अत्र गायत्री सावित्री, शान्ति-पुष्टिकरी सदा ।।3।। 

त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि, त्वयि प्राणाः प्रतिष्ष्ठिताः ।
शिवः स्वयं त्वमेवासि, विष्णुस्त्वं च प्रजापति ।।4।। 

आदित्या वसवो रुद्रा, विश्वेदेवाः सपैतृकाः । 
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि, यतः कामफलप्रदाः ।।5।।

त्वत्प्रसादादिमं यज्ञं, कर्तुमीहे जलोद्भव ।
सान्निध्यं कुरु मे देव, प्रसन्नो भव सर्वदा ।।6।।
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